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________________ Fortretreteteta tretratatatatatatertretetrtrtrtretieteetatertreteetatematika जैनग्रन्थरत्नाकरे Internetseteketaretaketareket keretete Pukttttttttttttain,., जो प्रचंड इंद्रिय भुजंग, थंभन सुमंत्र वर। जो विभाव संतम सुपुंज, खंडन प्रभात कर ॥ जो लब्धि वेल उपजंत घट, तासु मूल दृढता सहित । सो सुतप अंग बहुविधि दुविधि, करहि विबुधिबंछारहित ८१ यस्माद्विघ्नपरम्परा विघटते दास्यं सुराः कुर्वते ___ कामः शाम्यति दाम्यतीन्द्रियगणः कल्याणमुन्सर्पति । उन्मीलन्ति महर्द्धयः कलयति ध्वंसं च यः कर्मणां स्वाधीनं त्रिदिवं शिवं च नतिलाध्यं तपस्तन्न किम्।। । घनाक्षरी। जाके आदरत महा रिद्धिमों मिलाप होय, ___ मदन अव्याप होय कर्म बन दाहिये । विधन विनास होय गीग्वाण दास होय, ज्ञानको प्रकाश होय भो समुद्र थाहिये ॥ देवपद खेल होय मंगलमों मेल होय, इन्द्रिनिकी जेल होय मोषपंथ गाहिये । जाकी ऐसी महिमा प्रघट कहै कौरपाल, तिहुंलोक तिहुंकाल सो तप सराहिये ।।८२।। कान्तारं न यथेतरो ज्वलयितुं दक्षो दवाग्निं विना ॐ दावाग्निं न यथापरः शमयितुं शक्तो विनाम्भोधरम् । अनिष्णातः पवनं विना निरसितुं नान्यो यथाम्भोधरं ३ कौंचं तपसा विना किमपरो हन्तुं समर्थस्तथा८३॥ t. Matrtrtrtrtebete beteketetat-tekelnlnto a tuttetutetut ', .tilitlt.ttttatrkut.in
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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