SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ stet................... tatataktetnt.ket... tet.tutet.tt.tt जैनग्रन्थरत्नाकरे not.tet.t.xit.tokoretatutxxutekni.tutatukat.t.dot.kotukunkot.txt.kotainitatat.intukuttatutatute परम धरम वन दहै; दुरित अंबर गति धारहि । कुयश धूम उदगरै; भरि भय भम्म विथारहि ।। दुख फलंग फुकरेः तरल तृष्णा कल काढहि । धन ईधन आगम; संजोग दिन दिन अति बाढहि ॥ लहलहै लोभ पायक प्रबल; पवन मोह उद्धत बहै । दज्झहि उदारता आदि बहुः गुण पतंग कँवरा कहै ।।५९ शार्दूलविक्रीडित । ३ जातः कल्पतरुः पुरः सुरगवी नेपां प्रविष्टा गृह चिन्तारत्नमुपस्थित करतले प्राप्तो निधिः संनिधिम् । विश्वं वश्यमवश्यमेव सुलभाः स्वर्गापवर्गश्रियो * ये संतोषमशेषदोपदहनध्वंसाम्बुदं विभ्रते ॥ ६ ॥ (३१ मात्रा) संवया । विलसै कामधनु नाके घर; पूरे कल्पवृक्ष मुग्वपोष । र अग्वय भँडार भरे चिंतामणि तिनको सुलभ सुरग औ मोष ।। ते नर स्ववश करें त्रिभुवनको; तिनमों विमुग्य रहे दुग्व दोष । । सबै निधान सदा ताके द्विग; जिनके हृदय बमत संतोष ॥६॥ मजनाधिकार. शिखरिणी। वर क्षिप्तः पाणिः कुपितफणिनो वक्रकुहरे __ वरं झम्पापातो ज्वलदलनकुण्डे विरचितः । वरं प्रासप्रान्तः सपदि जठरान्तर्विनिहितो न जन्यं दौर्जन्यं तदपि विपदां सम विदुषा॥६॥ REETTET ME Hottttttttituttartuntukkk.bata.rnbirkirti. .... .. ...thakrantondan.in
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy