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________________ बनारसीविलासः षट्पद । जिन पूजहु गुरुनमहु, जैनमतवैन बखानहु । संघ भक्ति आदरहु, जीव हिंसा नविधानहु || झूट अदत्त कुशील, त्याग परिग्रह परमानहु | कोध मान छल लोभ जीत, सज्जनता ठानहु ॥ गुणिसंग करहु इन्द्रिय महु, देहु दान तप भावजुत । गहि मन विराग इहिविधि चहहु, जो जगमैं जीवनमुकत ॥ ८ ॥ पूजाधिकार । पापं लुम्पति दुर्गतिं दलयति व्यापादयत्यापदं पुण्यं संचिनुते श्रियं वितनुते पुष्णाति नीरोगताम् । सौभाग्यं विदधाति पल्लवयति प्रीतिं प्रसूते यशः स्वर्ग यच्छति निर्वृतिं च रचयत्यचर्हितां निर्मिता ॥ ९ ॥ ३१ मात्रा संवैया छन्द । लोप दुरित हरे दुख संकट; आप रोग रहित नितदेह | पुण्य भंडार भरे जरा प्रगटे; मुकति पंथसौं करै सनेह || रचै सुहाग देय शोभा जग; परभव पँहुचावत सुरगेह । कुगतिबंध दलमलहि बनारसि; वीतराग पूजा फल येह ||९|| स्वर्गस्तस्य गृहाङ्गणं सहचरी साम्राज्यलक्ष्मीः शुभा सौभाग्यादिगुणावलिर्विलसति स्वैरं वपुर्वेश्मनि । संसारः सुतरः शिवं करतलकोडे लुठत्यञ्जसा यः श्रद्धाभरभाजनं जिनपतेः पूजां विधत्ते जनः १०
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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