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________________ pot.t.tit.t.trint.titut.tttitutetst.t.t.tattituttitute बनारसीविलासः Jt.t.tt.t.t.te to t.................xxx.te TakistaT.K.tzot.t.rat.xnkuthtot.kot.ittt.tt.tutotokare कवित्त मात्रिक. (३१ मात्रा) जैसे पुरुष कोइ धन कारण, हीडत दीपदीप चढ़ यान ।। आवत हाथ रतनचिन्तामणि, डारत जलधि जान पापान ॥ तैसे भ्रमत भ्रमत भवसागर, पावत नर शरीर परधान । धर्मयन नहिं करत 'बनारसि' खोवत वादि जनम अज्ञान ४ मन्दाक्रान्ता । स्वर्णस्थाले क्षिपति स रजः पादशौचं विधत्ते पीयूषेण प्रवरकरिणं वाहयत्यधभारम् । चिन्तारत्नं विकिरति कराद्वायसोडायनार्थ यो दुष्पापं गमयति मुधा मर्त्यजन्म प्रमत्तः ॥ ५ ॥ मतगयन्द. (सवैया ) ज्यों मतिहीन विवेक विना नर, साजि मतङ्गज ईंधन ढोवै। * कंचन भाजन धूल भरै शट, मूढ सुधारससों पगधोवै ॥ वाहित काग उड़ावन कारण, डार महामाणि मूरख रोवै ।। त्यों यह दुर्लभ देह 'बनारसि', पाय अजान अकारथ खोवै५ शार्दूलविक्रीडित । ते धत्तुरतरुं वपन्ति भवने प्रोन्मूल्य कल्पद्रुमं चिन्तारत्नमपास्य काचशकलं स्वीकुर्वते ते जडाः । विक्रीय द्विरदं गिरीन्द्रसदृशं क्रीणन्ति ते रासभं ये लब्धं परिहत्य धर्ममधमा धावन्ति भोगाशया بگیگیلیليللليللليل وليلرلڈ بیٹریلیا،بلیلیریٹیلیٹیلیٹیلیویلیگیڈیلهلل یلکنسلر ایڈیلیڈیڈیو
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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