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________________ ( ७१ ) मिल नहीं सकते और सज्जनोंका दुष्टोंसे अलग रहना एक आध्यात्मिक आवश्यकता और एक दैवी नियम है । (ढ) सत्संगकी महिमा | हिन्दीमें एक कहावत है कि " खर्बज़ा ख़बूजे को देखकर रङ्ग पकड़ता है,” इसी प्रकार संसार में भली और बुरी संगतिका प्रभाव पड़ता है । मनुष्य जिस जलवायुमें पलता है और जिन घटनाओंके वशमें रहता है, वैसे ही गुण उसमें उत्पन्न हो जाते हैं । उसकी संगति निश्चय करके इस बातका निर्णय कर दती है कि वह क्या है और क्या होगा और उसका अगला जीवन किस सांचे में ढलेगा । संमार में आप जो जो कुछ नई २ बातें देखते हैं वे सब परस्पर मिलाप और संगतिके फल हैं । भावों की हड़ता, हृदयकी धीरता, राज्योंके परिवर्तन, सभाकी उत्तम और नीच दशा, युवा पुरुषोंका पुरुषार्थ, बूढ़ोंकी बुद्धिमत्ता, रहने सहनेकी अच्छी और बुरी अवस्था, उन्नति और अवनतिके क्रम, बोल चाल, ये सब परस्पर संगतिके फल हैं; और मनुष्य जैसे पुरुषोंके साथ रहता है, वैसे ही उनके विचार और भावोंको अपने भीतर ले लेता है और उसकी आकृति और चाल ढाल वैसी ही बन जाती है । इस लिए सच कहा है, साधुकी जिन संगत लीनी । उन्हीं कमाई पूरी कीनी ॥ यूनानके एक वैद्यका लड़का जुवारियोंके सङ्ग बैठा करता था । नापने कई बार रोका और बुरी संगतिके बुरे परिणाम भी
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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