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________________ ( ६६ ) उनके कारण औरोंको भी अमृतत्वका पद प्राप्त होता है । धन्य हैं वे पुरुष जो इस प्रकारके गुणोंसे युक्त हैं । (ड) सबसे प्रेम रखना और बुरी संगति से बचना । बुद्धिमान् और सिद्ध पुरुषोंकी सदासे यही शिक्षा रही है और संसार के सारे धर्म भी यही शिक्षा देते चले आए हैं कि हमें सबके साथ प्रेमभाव रखना चाहिये और साथ ही बुरे पुरुष और बुरी स्त्रियोंसे बचना चाहिये । ये दोनों बातें एक दूसरेके विरुद्ध नहीं हैं वरञ्च अनुकूल हैं । सबके साथ प्रेम रखने से निरा भाव ही अभिप्रेत नहीं है वरञ्च प्रेमकी व्यावहारिक रीति भी अनुगत है और भलाई करने और प्रेमी व्यावहारिक रीतिके लिए यह अवश्य है कि बुराई और द्वेषसे बचें | जिस मनुष्य में हमारा प्रेम है यदि हम उसके भले या बुरे कामोंका विचार न करें तो उस मनुष्यके विषय हमारा निरा प्रेमभाव चाहे जब द्वेषमें बदल सकता है और सम्भव है फिर हम उससे घृणा करने लगें । इस प्रकारके भावमें दूसरे मनुष्यकी भलाई और उसके सुधारका विचार नहीं किया जाता वरच अपने ही भावकी तुष्टिका ध्यान रक्खा जाता है परन्तु प्रेमके दृढ नियममें दूसरे मनुष्यकी भलाईका अवश्य विचार किया जाता है और यदि हम बुरे मनुष्यके साथी हो जाएं और उससे प्रीतिभाव रखकर भी उसे बुरे काम करनेसे न रोकें वरश्च बुरे काम करने दें तो यह गाढ़ प्रीति नहीं है और दृढ प्रेम करनेके सच्चे नियपके विरुद्ध है ।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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