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________________ ( ४५ ) (छ) बोझ सिरसे उतारकर डाल देना । प्रत्येक मनुष्य यह चाहता है कि मैं बोझ उतारकर हलका हो जाऊं, परन्तु बोझ उतारनेकी उत्तम रीति क्या है? कोई मनुष्य सदाके लिए बोझ उठाना नहीं चाहता, उसका तात्पर्य केवल यह होता है कि इस बोझको थोड़ी दूर जाकर डाल दूं । युक्ति नहीं चाहती कि तुम निरन्तर दुःखका बोझ उठाते रहो । जिस प्रकार भौतिक वस्तुओंमें बोझ इसलिए उठाते हैं कि उसे एक स्थानसे लेकर दूसरे स्थानमें रख दें, इसी प्रकार आध्यात्मिक वस्तुओंमें भी बोझ उठाने वा दुःखके सहनेसे यही तात्पर्य होता है कि उससे अन्तमें कोई भलाई प्रतीत हो और इस भलाईके प्राप्त होनेपर हम उस बोझको अलग कर देते हैं, फिर इस बोझका उठाना आनन्ददायक होगा। इस कारण कई एक तपस्वी और साधु जो अपने शरीरको अनेक प्रकारके कष्ट पहुंचाते है, यह सब वृथा है और इसी प्रकार मानसिक कष्ट भी वृथा है । ऐसा कोई बोझ नहीं जिससे खेद पहुंचे । यदि तुम कोई काम करना चाहते हो तो उसे हंसी खुशीसे करो, बुड़बुड़ाते हुए न करो। यदि कोई आवश्यक समय तुमपर आ पड़े वा कोई आवश्यक काम करना पड़े तो तुम्हें उसे अपना मित्र और सहायक समझना चाहिए, और यह तुम्हारी बड़ी भारी मूर्खता है जो तुम उस आवश्यक समय और कामको अपना शत्रु समझकर उससे बचना चाहते हो । देखो जो कृत्य हमें करने हैं यदि हम उनको प्रसन्नतापूर्वक न करें तो वह हमारे
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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