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________________ ( ४१ ) विचारों और कार्योंसे मिलकर बना है । जैसे किसी के विचार और कार्य होंगे वैसे ही उसका जीवन होगा । जैसे कि वर्ष क्षणोंसे मिलकर बना है, उसी प्रकार मनुष्यका शील भी उसके विचार और कार्योंसे मिलकर बना है और पूर्ण वस्तुमें उसके भागोंका चिन्ह अवश्य होगा | छोटे २ कृपा दान और उत्सर्गके काम करनेसे एक दयालु और दानी शील बनता है । छोटे २ कष्ट और दुःख सह लेने अपने आपको वशमें करने और इन्द्रियोंको जीत लेनेसे एक दृढ़ और उत्तम शील बनता है । पक्का सरल और अर्थशुचि ( हाथका सच्चा ) मनुष्य वही है, जो अपने जीवनकी छोटी २ बातों में सरलता और निष्कपटता बर्तता है । उत्तम और साधु जन वही है जो प्रत्येक बातमें जिसे वह कहता है और करता है साधुतासे काम लेता है । तुम्हें अपने कृत्य करनेमें जो कष्ट और खेद होता है वह केवल तुम्हारा मनका खेद है । यदि तुम उस कृत्यके विषय में अपनी मनोभावनाको बदल दो, तो उसी समय टेढ़ा मार्ग सीधा हो जाएगा और दुःख वा खेद के बदले सुख और आनन्द प्रतीत होगा । इस बातका ध्यान रक्खो कि प्रतिक्षण तुम दृढ़ता शुद्धता और किसी विशेष उद्देश्य से काम करो; प्रत्येक कर्म और कृत्यमें एकायता और निःस्वार्थसे काम लो; अपने प्रत्येक विचार वचन और कर्ममें मीठे और सच्चे बनो; इस प्रकार अनुभव और अभ्यासद्वारा अपने जीवनकी छोटी २ बातोंको उत्तम समझनेसे तुम धीरे २ चिरस्थायी श्रेय और परम सुख प्राप्त कर लोगे ।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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