SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ $60 X 60 50.60.50.65.98 99 98570909 कविवर भृधरदासविरचित नकी ॥ सबहीसों ऐन सुखदैन मुखवैन भाखों, भावना त्रिकाल गखों आतमीक धनकी । जौलों कर्म काट खोलों मोक्षके कपाट तौलों, ये ही बात हूजा प्रभु पूजौ आस मनकी ॥ ९२ ॥ जिनधर्मप्रशंसा । दोहा | ३३ छये अनादि अज्ञानसों. जगजीवनके नैन । सब मत मूठी धूलकी. अंजन है मत जैन ॥ ९३ ॥ मूल नदी के तिरनको. और जतन कछु है न । सब मत घाट कुघाट हैं, राजघाट है जैन ॥ ९४ ॥ तीनभवन में भर रहे, थावर जंगम जीव । सब मत भक्षक देखिये, रक्षक जैन सदीव ॥ ९५ ॥ इस अपार जगजलधिमें, नहिं नहिं और इलाज । पाहनवाहन धर्म सब, जिनवरधर्म जिहाज ॥ ९६ ॥ मिथ्यामतके मदछके, सब मतवाले लोय । सब मतवाले जानिये, जिनमत मत्त न होय ॥९७॥ मतगुमानगिरिपर चढ़े, बड़े भये मनमाहिं । लघु देखें सब लोककों, क्यों हूं उतरत नाहिं ॥ ९८ ॥ चामखनसों सब मती, चितवत करत नवेर । ज्ञाननैनसों जैन ही, जोवत इतनो फेर ॥ ९९ ॥ ज्यों बजाज ढिग राखिक, पट परखे परवीन । aovaprabh 90/98603009 त्यों मतसों मतकी परख, पावैं पुरुष अमीन ॥ १०० दोय पक्ष जिनमतविष, नय निश्चय व्यवहार । dodovcooov Daovdocododovanvan
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy