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________________ abvaovanva 20 ४ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ जैनशतक | श्रीवर्डमानजिनस्तुति । दोहा | दिन कर्माचल दलनपेवि, भवि- सरोज- रविराय । कंचनछवि कर जोर कवि, नमत वीर जिन पाय ॥ ९ सवैया (३१ मात्रा.) रहो दूर अंतरकी महिमा, बाहिज गुनवरनत बल काँप । एक हजार आठ लच्छन तन, तेज कोटि रवि किरन उथा ॥ सुरपति सहस आंखअंजुलिसों. रूपामृत पीवत नहिं धप । तुम विन को समरत्थ वीरजिन, जगसों काहि मोखमें थाप ॥ १० ॥ श्री सिद्धस्तुति । मत्तगयंद | ध्यान हुताशनमें अरि ईंधन. झोंक दियो रिपु रोक निवारी । शोक हस्त्रो भविलोकनको वर, केवलभानमयूख उधारी ॥ लोक अलोक विलोक भये शिव, जन्मजरामृतपंक पखारी । सिद्धन थोक बसें शिवलोक, तिन्हें पगधोक त्रिकाल हमारी ॥ ११ ॥ तीरथनाथ प्रनाम करें, तिनके गुनवर्ननमें बुधि हारी । मोम गयो गल ममझार रह्यो, तहँ व्योमं तदाकृतिधारी । लोक गहीरनदीपति नीर, गये तिरतीर १ वज्र । २ तृप्त होवे । ३ निकालकर । ४ ध्यानरूपी अग्नि । ५ किरणं । ६ साचमे । ७ आकाश । ८ गभीर समुद्र । prepved reover
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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