SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुस्तुति । वंदौं तिन्हें मुनि जे हुए कवि काव्य करैया । वंदामि गमक साधु जो टीकाके धरैया ॥ वादी नमो मुनिवादमें परवाद हरैया । गुरुवागमीककों नमों उपदेशभरैया॥जैवंत॥२९॥ ये नाम सुगुरुदेवका कल्याण करै है। मवि वृंदका ततकाल ही दुखद्वंद हरै है ॥ धनधान्य ऋद्धि सिद्धि नवौं निद्धि भरै है। आनंदकंद देहि सबी विघ्न टरै है । जैवंत ॥३०॥ इह कंठमें धारै जो सुगुर नामकी माला । परतीतिसौं उरप्रीतिसौं ध्यावै जु त्रिकाला॥ यह लोकका सुख भोग सो सुर लोकमें जावै । नरलोकमें फिर आयके निखानको पावै ।। ३१ ॥ जैवंत दयावंत सुगुरु देव हमारे । संसार विपम खारसौं जिन भक्त उधारे ॥ इति श्रीगुरुस्तुति समाप्त । कविवर वृन्दावनजी रचित । गुर्वष्टक । कवित्त ३१ मात्रा। संघसहित श्रीकुंदकुंद गुरु, वदंन हेत गए गिरनार | वाद परौ तहँ संशयमतिसौं, साक्षी बदी अंबिकाकार ॥ 'सत्य पंथ निरग्रंथ दिगम्बर, ' कही सुरी तहँ प्रगट पुकार। सो गुरुदेव वसो उर मेरे, विघ्न हरण मंगल करतार ॥१॥ श्रीअकलंकदेव मुनिवरसौं, वाद रच्यौ जहँ बौद्ध विचार ।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy