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________________ w मुनिवंशदीपिका | रचिकै राजवारतिक टीका, अर्थ प्रगट कीना ॥ २१ ॥ tय निक्षेप प्रमाण कथन सब, सम्यकके कारन | सोलह सहस प्रमान रच्यौ भौ, - सागर से तारन || उमास्वामीका मत लीना, ताका शुभ उपदेश सुगुरुनैं, हमकौं दे दीना ॥ मेरे मन ऐसा गुरु भावै, आप तिरै औरनिकौं तारे, मारग बतलावै ॥ २२ ॥ विद्यानन्द स्वामी । विद्यानंदि मुनिंद जगत में, भए सुगुरु ज्ञानी । आतपरीक्षा शास्त्र रच्यो, त्रय सहस्र परवानी । आप्तमीमांसा पुनि बरनी, ठारा सहस प्रमाण ग्रंथ, सो मिथ्यातमहरनी ॥ २३ ॥ पुरुष प्रमाणतनी मुरनर मुनि, कर सबी पूजा । वीतराग सर्वज्ञ विना नाहें, आप्तदेव दूजा । वही है देव देव नीका, श्लोकवारतिक रची फेरि, दशमूत्रनिकी टीका ||२४|| बीस हजार प्रमाण कही इस, ग्रंथतनी सूची | परउपगारनिमित्त दे गए, मोक्षमहल- कूँची || पार नहिं सतगुरुके गुनका, रचे और बहु ग्रंथ ठीक नहिं, मिला मुझे उनका । मेरे मन ऐना गुरु भावै, आप तिरै औरनिकौं तारै, मारग बतलावें ॥ २५ ॥ पूज्यपादस्वामी |
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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