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________________ मुनिवशदीपिका। विसतरी है । स्याद्वाद जोरतें मिथ्यात नंग तोर फोर, धारा वही सदा ज्ञानसागरमैं परी है । करम भरम भेत निजानंदभूति देत, मुनिभिरुपोसित पवित्र सुरसरी है । विसराम भूमि जानि जीवनपै दया ठानि, उमास्वामी आदि सूत्र रचना सु करी है ॥ १४ ॥ ___ छप्पय छंद । है अनादि जैवंत, मुक्तिपर्यंत तासु हैद । तारन शील सदीव, हरै चिरकर्म-महागद ।। पशु पंछी सुनि तिरै, देव नर इन्द्र कहावै । मुनि हत्याके भरे, अनुक्रम शिवपुर पावै ॥ मणिमंत्ररूप जिन शारदा, मिथ्याविष नाशन जरी। परहेत सूत्रको पारमथि, टीका करि गुरु उद्धरी॥१५॥ सूत्रकारों तथा टीकाकारोंकी प्रशंसा । दोहा। जिन जिन श्रीमुनिरायनें, सूत्रकारिका कीन । कछुयक तिनके नाम गुण, कहत नैनसुख दीन॥१६॥ चाल-" चैत पीछले पाख रामनौमीको जनम लिया ।" इस बारहमासेकी । राग-बरवा । भगवान उमास्वामी। प्रथम उमास्वामी तत्त्वारर्थ, अधिगम श्रुत बरना। मोक्षशास्त्र जैवंत जगतमैं, है तारन तरना॥ आप्तको जानैं सिर न्याया, १ पर्वत । २ मुनियोके द्वारा पूजनीय । ३ गंगा । ४ सीमा । ५ महारोग। ६ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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