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________________ खाने । लाख तिरापी ऊपर जाने ॥ अठावन सहसपंच अधिकाने। द्वादश अंगमात्र पद माने॥ इकायन कोड़ि आठ ही लाखे । सहस चुरासी छहसौ भाखं । साढे इकीस शिलोक बताये। एक एक पदके ये गाये ॥९॥ पत्ता । जा बानीके ज्ञानसों, सूझै लोक अलोक । 'द्यानत जगजयवंत हो, सदा देत हूं धोका॥१॥ ॐ हीं श्रीजिनमुखागतसरस्वत्यै देव्यै पूर्णाध्य निर्वपामि । इति सरस्वतीपूजा ममाप्ता ।। म्वर्गीय कविवर पं. बनारसीदास कृत शारदाष्टक वस्तुछंद। नमो केवल नमो केवलरूप भगवान । मुख ओंकार धुनि सुनि अर्थ गणधर विचार । रचि आगम उपदिशै भविक जीव संशय निवारै। सो सत्यारथ शारदा, तासु भक्ति उर आन । छंद भुजंगप्रयातमें अष्टक कहीं बखान ॥१॥ भुजंगप्रयात । जिनादेश जाता जिनेन्द्रा विख्याता । विशुद्ध
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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