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________________ अथ सरस्वतीपूजा भाषा लिख्यते । दोहा । जनम जरा मृति छय करे, हरे कुनय जडरीति । भवसागरसों ले तिरे, पूजें जिनवचप्रीति ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिन मुखोद्भव सरस्वतिवाग्वादिनि ! अत्र अब - तर अवतर । संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः । अत्र मम सन्निहिता भवभव । वषट् । त्रिभंगी । छीरोदधि गंगा, विमल तरंगा, सलिल अभंगा, सुखसंगा । भरि कंचनझारी, धार निकारी, तृषा निवारी, हित चंगा ॥ तीर्थंकरकी धुनि, गनधरने सुनि, अंग रचे चुनि, ज्ञानमई । सो जिनवरबानी, शिवसुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं श्रीजिन मुखोद्भव सरस्वतीदेव्यै जलं निर्वपामीति स्वाहा । करपूर मंगाया, चन्दन आया, केशर लाया, रंग भरी । शारदपद बंदौं मन अभिनंदौं, पापनिकंदौं, दाह हरी ॥ तीर्थ० सो० ॥ २ ॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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