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________________ का बन नहीं रखा है। अनुसार संस्कृत, पैशाची और अपन में भी कथा का वि किया जा सकता है ।" हेमचन्द्र ने कथा के दस भेद किए हैं-आख्यान नि का मसिकुल्या, परिका, कना, सकलकवा, उपप्रत्येक का स्वरूप निम्न प्रकार है- या वृतका आस्थान- प्रबन्ध के मध्य मे दूसरे को समझाने के लिए नलादि उपाख्यानकी तरह उपाख्यान का अभिनय, पाठ अथवा गान करते हुए जो एक ग्रन्थिक (ज्योतिषी) कहता है, वह योविन्द्र की तरह आख्यान कहलाता है।" निदर्शन - पशु-पक्षियों अथवा तद्भिन्न प्राणियों की चेष्टाओं के द्वारा जहाँ कार्य अथवा अवार्य का निश्चय किया जाता है, वहां पंचतन्त्र बादि की तरह तथा धूर्त, विट, कुट्टनीमत, मयूर, मार्जारिका आदि को तरह निदर्शन कहलाता है ।" R प्रवह्निका. -प्रधान नायक को लक्ष्य करके जहाँ दो व्यक्तियों में विवाद हो, वह आधी प्राकृत मे निबद्ध बेटकादि की तरह प्रवह्निका है । * मतल्लिका- प्रेस (भूत) - भाषा अथवा महाराष्ट्री भाषा में रचित लघुकथा, गोरोचना अथवा अनगवती आदि की तरह मतल्लिका कहलाती है, जिसमें पुरोहित, अमात्य अथवा तापस आदि का प्रारम्भ किये गये कार्य को समाप्त न कर पाने के कारण उपहास होता है, वह भी मतल्लिका कहलाती है । * १. काव्यानुवासन, कावृति । २, ये परप्रबोधनार्थं नलाद्युपाख्यानमिवोपाख्यानमभिनयत् पठन् गायन पर्वको मम्पिकः कथयति तद् गोविन्दवदाख्यानम् । - वहीं, वृत्ति । तिरपचामतिरश्चां वा पेष्टामित्र कार्यमकार्य वा निश्चीयते तत्पंचतन्त्रा:-- दिवत् कुट्टनीमतमयूरमारिकादिवच्च निदर्धनम् । -agt, sic que IV ४. १ अपिल बगइयोविवाद सोऽर्थप्राकृतरचिता पेटकादिवत् प्रवह्निका । 74 $ ५ तमहाराष्ट्राचा नवा गोरोचना भगवत्यादिना । यस्यां पुरोहितामात् V *
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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