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________________ II प्राक्कथन विवाह का लक्षणः-- ___ पूर्व मंम्कारों के उदय से पैदा होने वाली कामवेदना की निवत्ति के लिये,जो समाज और राष्ट्र की रीति नीति के अनुसार, इष्टदेव, अग्नि, पण्डित और प्रतिष्ठित पुरुपों की साक्षी पूर्वक जो पुरुप और स्त्री का पारम्परिक पाणिग्रहण है वह विवाह है । विवाह का उद्देश्य:--- विवाह का उद्देश्य, विमूढ मन की कामुकता को गृहीत स्त्री वा पुरूप में कीलित करना है । उमकी लोलपता को दाम्यत्य जीवन मे सीमित करना है। उमकी उच्छृङ्खलता को गृहम्थ को मर्यादाओं से बांधना है। इस हालत मे उमे लौकिक अभ्युदय की निःमारता दिग्वाकर शनैः शनै: उमकी विमूढना को हरना है । उसकी बाहर में फैली हुई वृत्तियों को भीतर की ओर खींचना है। उसके चित्त को परमार्थ मे लगाना है। उसे शिव, शान्त, मुन्दर परमात्मपद को प्राप्त कराना है। इम विवाह के करन में यहाँ मनुष्य को परम्पराम्प मे पर मात्म पद मिलता है। वहाँ माक्षात् रूप में उमे अभ्यदय पद भी मिलता है । इम विवाह के करने से जहाँ मनुष्य का व्यक्तिगत हित होता है, वहाँ समष्टिगन हित भी होता है। जहाँ इम करने से व्यनि.गत जीवन मे चरित्र बल बढ़ता है, उसमें प्रेम और मंयम, त्याग और सेवा, मदुता और मधुरना, उदारता और सहिष्णुता सरीखे उच्च भाव बढ़त हैं। वहाँ इसकं करने से ममाज * (अ) 'सद्वेध चारित्र महोदयाद मदन विवाह: स्वामी अकलंकदेव-गजानिक ७.२८ (श्रा) "यक्तितो वरण विधानमग्निदेव द्विज माक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः” । श्री सोमदेवः--नानवाक्यामृत
SR No.010126
Book TitleJain Viaha Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumerchand Jain
PublisherSumerchand Jain
Publication Year
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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