SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८ ) वर के सात वचन १-मम कुटुम्बजनानां यथायोग्यं विनयशुश्रुषा कर णीया ( मरे कुटम्बियों की यथायोग्य सेवा विनय आदर सत्कार करना) २-मम आज्ञा न लोपनीया । (मेरी आज्ञा को कभी भंग मत करना) ३-कटु निष्ठुरवाक्यं न वक्तव्यम् ( कड़वा और मर्म भेदी वचन न बोलना) ४-सत्पात्रादिजनभ्यां गहागतभ्यः आहारादि दाने कलुषितं मनो न कार्यम् (सत्पात्रादि-मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका आदि के घर आने पर दान देने में अपने मन को कलषित न करना । ५-रात्री परगहे न गन्तव्यम् ( रात को दुसरं के घर पर मत जाना) ६-बहुजनसंकीर्णेम्थाने न गन्तव्यम् ( जहां बहुत मे आदमी एकत्र हो रहे हों ऐसे स्थान पर मत जाना) ७--कुत्मिताधर्मिमद्यपायिनां गहे न गन्तव्यम् (जिनका आचरण और धर्म खगव है ऐसे मद्यादि पीने वालों के घर पर नहीं जाना चाहिये) एतानि मदुक्तानि वचनानि यदि स्वीकरोषि तदा
SR No.010126
Book TitleJain Viaha Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumerchand Jain
PublisherSumerchand Jain
Publication Year
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy