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________________ भावार्थ-जो सर्वज है जिमने तीन लोक और तीन काल को साक्षात् कर लिया है । जिसने राग द्वेष आदि भीतरी कमजोरियों को विजय कर लिया है उस महादेव को मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥ २, ३-जो न किसी माया सं विलिन है, न जटा धारी है, न चन्द्र धारी है, न रुड-मुंडों की माला पहने हुए है, न साँपों को लिपटाए हुए है, न धनुप और त्रिशूल धारी है, न किमी कामना वाला है, न किसी कामिनी को साथ रखता है, न बैल पर सवार है, न गाता और नाचता है, ऐसा निरंजन जिन पति शिव हम सब की रक्षा करे ॥ २ ॥ ३ ॥ ४---जो विश्वदर्शी है, जो ममदर्शी है, जिसका वचन पर्वापर विरोध रहित है, नय और प्रमाण से सिद्ध है, जो अपने विविध गुणों के कारण बुद्ध, वर्धमान, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि नामों में विख्यात है उस निर्दोष गुणाधीश ईश्वर को नमस्कार है॥४॥ ५---जो निःशस्त्र है, मोह का विजेता है, कर्मशत्रओं का नाश करने वाला है, राग-द्वेष रहिन है, मान्यता से भरा है, आत्मरस में लीन है, परम आनन्दमय है, परम शान्त और सुन्दर है, ऐसा अर्हन्न देव हमारी रक्षा करे ।। ५ ।। ६-जो जन्म-मरण रहित है, जो रोग और बुढ़ापे से दूर है जो अशरीरी है, जो ज्ञान की मूर्ति है, निर्मलता की मूर्ति है, ऐसे अनुपम सिद्ध भगवान हमारी रक्षा करें ।। ६ ।। ७-जिन्होंने मोह का मार्ग छोड़कर वैराग्य का मार्ग ले लिया है,
SR No.010126
Book TitleJain Viaha Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumerchand Jain
PublisherSumerchand Jain
Publication Year
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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