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________________ (-५५३) प्र० १०६ - " रोके न चाह निजशक्ति खोय ।" इस दोहे के छन्द - निर्जरातत्व सम्बन्धी जीव की भूल बताने के पीछे क्या मर्म है ? 7 उ०- निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्ट ज्ञान कराना -है । (१) आत्मस्वरूप में सम्यक प्रकार से स्थिरता अनुसार शुभा - शुभ इच्छाओ का अभाव होता है । वह ही सच्ची निर्जरा है और वह ही सम्यक तप है 1, इस बात को भूलकर अनशनादि तप से निर्जरा मानना - यह निर्जरातत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल है । ( २ ) आत्मस्वरूप में सम्यक प्रकार से स्थिरता अनुसार शुभाशुभ इच्छाओ का अभाव होता है। वह ही सच्ची निर्जरा हे और वह ही सम्यक तप है। इस बात को भूलकर अनशनादि तप से निर्जरा मानना - ऐसा अनादि काल का श्रद्धान अगृहीत मिथ्यादर्शन है । ( ३ ) आत्मस्वरूप मे सम्यक प्रकार से स्थिरता अनुसार शुभाशुभ इच्छाओं का अभाव होता है वह ही सच्ची- निर्जरा है और वह ही संम्यक तप है । इस बात को भूलकर अनशनादि तप से निर्जरा मानना ऐसां अनादिकाल का ज्ञान अगृहीत मिथ्याज्ञान है । ( ४ ) आत्मस्वरूप में सम्यक्र प्रकार से स्थिरता अनुसार शुभाशुभ इच्छाओ का अभाव होता है । वह ही सच्ची निर्जरा है ओर वह ही सम्यक तप है । इस बात को भूलकर अनशनादि तप से निर्जरा मानना - ऐसा अनादिकाल कॉ आचरण अगृहीत मिथ्याचारित्र है -1) (५) वर्तमान में विशेषरूप से मनुष्यभव व जैन धर्मी होने पर भी कुगुरु- कुदेव - कुधर्म का उपदेश - मानने से अनशनादि तप से निर्जरा मानना - ऐसा अनादिकाल का श्रद्धान विशेष विशेष दृढ होने से ऐसे श्रद्वान को गृहींत मिथ्यादर्शन बताया है । (६) वर्तमान मे विशेषरूप से मनुष्यभव जैनधर्मी होने पर भी कुगुरू - कुदेव कुधर्म का उपदेश मानने से अनशनादि तप से निर्जरा मानना - ऐसी अनादिकाल का ज्ञान विशेष दृढ होने से ऐसे ज्ञान को गृहीतं मिथ्या ज्ञान बताया है । .. (७) वर्तमान मे विशेष रूप से मनुष्यभंव व जैनधर्मी होने पर भी कुगुरू-कुदेव - कुधर्म 1
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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