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________________ ( २७५ ) देखे बिना तरसती आँखे, रहना चाहती साथ मे । तेरे बिना न खाती खाना, तू ही था हर बात मे ॥ तुझको पूछे बिना ही सारा काम चलाया जायेगा । ओ प्यारे परदेशी पन्छी, जिस दिन तू उड़ जायेगा ।। २ ।। शेयेगे थोडे दिन तक, ये भूलेंगे फिर बाद मे । ज्यादा से ज्यादा इतना कुछ करवा देगे याद मे ॥ हलवा पुडी खाकर तेरा श्राद्ध मनाया जायेगा । ओ प्यारे परदेशी पन्छी जिस दिन तू उड जायेगा || ३ || तुझे पता है क्या कुछ होता फिर क्यो नही सोचता । सूरख वह दिन भी आवेगा, पडा रहेगा सोचता ॥ जन्म अमोलक खोकर हीरा पीछे तू पछतायेगा । ओ प्यारे परदेशी पन्छी, जिस दिन तू उड जायेगा ॥ ४ ॥ अलिंगन ग्रहण के बीस बोल ( प्रवचन सार गाथा १७२ ) दोहा 3 बदन श्री महावीर को, साधा आत्म स्वरुप | इन्द्रियातीत अखण्ड अरु, अद्भुत आनन्दरुप ॥ नमस्कार जिन वचन को दर्शाया आत्म स्वरुप | शुद्धोपयोग प्रकाश से, जाना अन्तर रुप | परमरुप निज आत्म का, देहादिक से पार । चेतन चिह्न ग्राह्य जो, पर लिगो से पार ॥ हरिगीत अद्भूत आत्म स्वरुप को, प्रभु कुन्दकुन्द प्रकाशता । अमृत स्वामी हृदय खोलकर, परमामृत बरसावता ।।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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