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________________ ( २७०) अमरावती सहर है वहा गया थो तहा चातुर्मास मे रह्यो थो तहाँ श्रावगमडलीक उपदेस राग द्वेष का देतो थो अमुका भला है अमुका पोटा (खोटा) है इत्यादिक उपदेस समयक् जलालसगी मैं कही के आप किस भला बुरा कहते हो जाणते हो मानते हो सर्व वक्त आपणा अपणा स्वभावकूलीया हुवा स्वभावमैं जैसी है तैसी ही है प्रथम आप अपेण समजो इस प्रमाण क जलालसगी मैं कू कही तो बी मेरी मेरे भीतर स्वानुभव अतरात्मद्रष्टी न भई, कारण पायकरि के सहर करजाके पाटधीश श्रीमत् देवेद्रकीर्तिजी भट्टारकमहाराज से मैं मिल्यो, महाराजका सरीरकी वयवद्धि ६५ पच्याणव वर्षकी स्वामी मंसे कही तुमक सिद्ध पूजापाठ आता है के नही आता है तब मै कही मैक आता है तब स्वामी बोले के जयमाला को अतको श्लोक पढो तब मै अत्तको श्लोकविवर्ण विगन्ध विमान विलोभ, विमाय विकाय विशब्द विसोक । अनाकुल केवल सर्व विमोह, प्रसिद्ध विशुद्ध सुसिद्ध समूह ॥ तब श्री गुरु मैक कही के स्वयसिद्ध परमात्मातो कालो पीलो लाल हया सुपेदादिक वर्ण रहित है सुगध दुर्गध रहित है क्रोध मान माया लोभ रहित है पच प्रकार सरीर रहित है तथा छकाया रहित है शब्द द्वारा भाष होता है सर्व आकुलता रहित है सर्व ठिकाण विशुद्ध प्रसिद्ध प्रगट हे देखो देखो तुमक्कू वो परमात्मा दीखता है के नही दीखता है तब मै स्वामीका श्रीमुखसै श्रवण करकै चकितचि हो गयो स्वामी तो मैके नगीचसै उठकरि भीतर जैन मदिर में चले गये अर मै मेरा मन मे बहुत विचार कीया वो प्रसिद्ध सिद्ध परमात्मा मैच कोई ठिकाणे कोई द्रव्य क्षेत्र काल भव भाव मै दीख्या नही मै विचार कीया के कानो पीलो लाल हरयो धोलो काया माया छायोसे अलग है तो बी प्रसिद्ध सिद्ध प्रगट है अर मै तो जिधर देखता हू उधर वर्ण रग कायादिक ही दीखता है वो प्रसिद्ध सिद्ध प्रगट है तो मैं क् क्य नही दीषता-इत्यादि विचार बहुत कीया बाद पश्चात् स्वामीसै मैक ही हे कृपानाथ वो प्रसिद्ध सिद्ध प्रगट है सो तो मै क दीखता है नही
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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