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________________ ( २५८ ) सर्वथा सम्बन्ध नही है । (३) आस्रव-बंध तत्व मे क्या बताना है ? तू अजीव तत्व मे अपनापना मानता है तो आस्रव-वध की उत्पत्ति होकर दुखी होता है । (४) सवर-निर्जरा और मोक्ष मे क्या वताना है ? यदि तू अजीव तत्व से अपना सम्बन्ध ना माने तो तुरन्त अपने जीव तत्व पर दृष्टि आ जावे तभी सवर-निर्जरा की शुरूआत होकर नियम से मोक्ष की प्राप्ति हो। प्र० ५२- अपने आत्मा की महिमा कैसे आवे ? उत्तर--अरे भाई तू व्यर्थ मे पर पदार्थ की महिमा मे कितना पागल हो रहा है। तू अभी शरीर को छोड़कर चला जायेगा तो तेरा क्या सम्बन्ध रहेगा। ऐसा विचार करके जब पर से तेरा सम्बन्ध नही है ऐसा निर्णय हो जायेगा तभी अपनी आत्मा की महिमा आ जावेगी-दूसरा उपाय नहीं है। प्र० ५३-आज देश मे और प्रत्येक फिरके मे क्या देखने में आ रहा है? उत्तर-यह मेरा-मैं इसका, इसके विरूद्ध हो उसका नाश होऐसी प्रवृत्ति देखने मे आ रही है। दिन प्रतिदिन ऐसी प्रवृत्ति बढेगी क्योकि पचमकाल मे दिनोदिन बुरे दिन आने है । प्र० ५४-तो हमे क्या करना चाहिये ? उत्तर-किसी के झगडे मे मत पडो। एक मात्र अपने अनन्त गुणो के अभेद पिण्ड मे लीन होकर मुक्तिधाम के मालिक बनो। प्र० ५५-अपने मे लीनता नही होती तो इधर-उधर का ध्यान आ जाता है तो क्या करना? उत्तर-इधर-उधर ध्यान जाना मूर्खता है। भगवान तीर्यकर दिन रात बता रहे है। यदि दूसरो के झगडे मे पडेगा तो तू निगोद मे जा पडेगा और अपने झगडे मे पडेगा तो तू मोक्ष मे जायेगा। अत. निर्णय कर पर के चक्कर मे मत पड ।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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