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________________ ( २६५) प्र० १४६ - मन पर्यय ज्ञान किसको कहते है ? उत्तर- द्रव्य क्षेत्र काल-भाव की मर्यादा सहित दूसरे के मन में स्थित रूपी विषय के स्पष्ट ज्ञान होने को मन पर्यय ज्ञान कहते है । प्र० १५० - केवलज्ञान किसे कहते है ? उत्तर - जो तीन कालवर्ती सर्व पदार्थो को (अनन्त धर्मात्मक सर्व द्रव्य - गुण - पर्याय को ) प्रत्येक समय मे यथास्थित परिपूर्ण रूप से स्पष्ट और एकसाथ जानता है उसको केवलज्ञान कहते है । प्र० १५१ - श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन पर्यय ज्ञान और केवलज्ञान से क्या सिद्ध होता है ? उत्तर - प्रत्येक द्रव्य मे कमवद्ध पर्याय होती है, आगे-पीछे नही होती है। प्र० १५२ - तीन अज्ञानरुप ज्ञान मिथ्यादृष्टियों को किस-किस प्रकार हैं ? उत्तर - (१) चारो गतियो के मिथ्या दृष्टियों को कुमति कुन तो होते ही है । (२) मिथ्यादृष्टि देव - देवियो तथा नारकियो को कुअवधि भी होता है । ( ३ ) किसी-किसी मिथ्यादृष्टि मनुष्य और तियंच के भी कुअवधि होता है । प्र० १५३ - पाच ज्ञानरुप ज्ञान ज्ञानियों की किस-किस प्रकार है ? उत्तर-- (१) सम्यक मति - सम्यक श्रुत- ये दो ज्ञान छद्मस्थ सम्यग्दृष्टियों को होते ही है । (२) अवधि ज्ञान किसी-किसी छद्मस्थ सम्यग्दृष्टियों को होना है । ( ३ ) देव नारकी सम्यग्दृष्टियों को सुमति सुश्रुत - सुअवधि-ये तीन होते है । ( ४ ) मन पर्यय ज्ञान किसीकिसी भावनगी मुनि के होता है । (५) तीर्थंकर देव को मुनिदशा मे तथा गणधर देव को मन पर्यय ज्ञान नियम से होना है । (६) केवल ज्ञान केवली और सिद्ध भगवन्तो को होता है । ? प्र० १५४ - एक समय मे एक जींव के कितने ज्ञान हो सकते है उत्तर - एक समय मे एक जीव के कम से कम एक और अधिक
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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