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________________ ( १८६ ) द्वारा होने वाले मतिज्ञान से पहले के सामान्य प्रतिभास को अचक्षुदर्शन कहते है। प्र. १३७-अवधि-दर्शन किसको कहते है ? ___ उत्तर-अवधि ज्ञान के पहले होने वाले सामान्य प्रतिभास को अवधि दर्शन कहते है। प्र० १३८-केवल दर्शन किसको कहते है ? उत्तर-केवल ज्ञान के साथ होने वाले सामान्य प्रतिभास को केवल दर्शन कहते है । प्र० १३६-दर्शनोपयोग किसे कहते है ? उत्तर-पदार्थो के भेद रहित सामान्य प्रतिभास को दर्शनोपयोग कहते है। प्र० १४०-दर्शन कब उत्पन्न होता है ? उत्तर-छद्मस्थ जीवो के ज्ञान के पहले और केवल ज्ञानियो के ज्ञान के साथ ही दर्शन उत्पन्न होता है । प्र० १४१-शास्त्रो मे आता है कि दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम-क्षय के अनुसार उपयोग होता है ? उत्तर-निमित्त कारण का ज्ञान कराने के लिए उपचार कथन है। प्र० १४२-चार प्रकार के दर्शनो मे १ तदर्शन और मन पर्यय दर्शक के नाम क्यो नही आये ? ___ उत्तर-श्रुतदर्शन और मन पर्यय दर्शन नहीं होते है, क्योकि श्रुतज्ञान और मन पर्यय ज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होते है। ज्ञानोपयोग के भेद णाणं अट्ठवियप्प मदि सुद अोही अणाणणाणाणि । मणपज्जय केवलमवि पच्चक्ख परोक्क्ख भेय च ॥५॥ अर्थ -(मति सुद ओही अणाणणणाणि) मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधि
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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