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________________ ( १६७ ) प्र० ४१-इन नौ अधिकारो का मर्म जानने के लिये क्या जानना आवश्यक है ? उत्तर-नय सम्बन्धी ज्ञान का होना आवश्यक है, क्योकि नय ज्ञान हुये बिना नव अधिकारो का मर्म समझ मे नही आसकता है। प्र० ४२-प्रमाण ज्ञान किसे कहते है ? उत्तर- प्रत्येक वस्तु सामान्य-विशेपात्मक होती है इसी वस्तु के सच्चे ज्ञान को प्रमाण कहते है। प्र० ४३-नय किसे कहते है ? उत्तर--प्रमाण द्वारा निश्चित हुई अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक-एक अग का ज्ञान मुख्यरुप से कराये उसे नय कहते है । प्र. ४४ नय का तात्पर्य क्या है ? उत्तर-वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। वस्तु मे किसी धर्म की मुख्यता करके अविरोध रुप से साध्य पदार्थ को जानना ही नय का तात्पर्य है। प्र० ४५-नय किसको होते है और किसको नही होते है। उत्तर-साधक सम्यग्दृष्टि को नय होते है मिथ्याप्टि को नय नही होते है। प्र० ४६-सम्यग्यदृष्टि को ही नय क्यो होते है ? उत्तर-सम्यग्दृष्टि के सम्यक श्रुतज्ञान प्रमाण प्रगट होने से उसके नय होते है। प्र० ४७-मिथ्यादृष्टि को नय क्यो नहीं होते है ? उत्तर-मिथ्यादृष्टि का श्रुतज्ञान मिथ्या होने से उसके नय नही होते है। प्र० ४८-क्या पहले व्यवहार नय होता है ? उत्तर-नही होता है, क्योकि "निरपेक्षा नया मिथ्या.-सापेक्षा
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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