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________________ सिर पर रखकर बाजार मे बेचने जाता है और कभी मिट्टी का तसला सिर पर रख स्त्रियो से रोटी मागने लगता है, कभी पुत्रादिक को खिलाने लगता है, कभी धान काटने जाता है, कभी राजादि बडे अधिकारियो के पास जाकर याचना करता है कि महाराजा | मै आजीविका के लिये बहुत ही दुखी हैं मेरी प्रतिपालना करे, कभी दो पैसे मजदूरी के लेकर दाती कमर मे लगाकर काम करने के लिए जाता है, कभी रुपए दो रुपये की वस्तु खोकर रोता है हाय । अब मैं क्या करू गा ? मेग धन चोर ले गए | मैंने धीरे-धीरे धन इकट्ठा किया और उसे भी चोर ले गये, अव मै अपना समय कैसे विताऊगा? कभी नगर मे भगदड हो तो वह पुरुष एक लडके को अपने काधे पर बैठाता है और एक लडके की अगुली पकड लेता है और स्त्री तथा पुत्री को अपने आगे कर, सूप, चालणी, मटकी, झाडू आदि सामान को एक टोकरी मे भरकर अपने सिर पर रखकर, एक दो गुदडो की गठरी बाधकर उस टोकरी पर रख आधी रात के समय नगर से बाहर निकलता है। उसे मार्ग मे कोई राहगीर मिलता है, वह (राहगीर) उस पुरुप को पूछता है हे भाई आप कहा जाते है? तब वह उत्तर देता है कि इस नगरमे शत्रुओ की सेना आई है इसलिए मै अपना धन लेकर भाग रहा है और दूसरे नगरमे जाकर अपना जीवन यापन करू गा इत्यादि नाना प्रकारका चरित्र करता हुआ वह कल्पवासी देव उस गरीब के शरीर मे रहते हुए भी अपने सोलहवें स्वर्ग की विभूति को एक क्षणमात्र भी नहीं भूलता है, वह अपनी विभूति का अवलोकन करता हुआ सुखी हो रहा है । उसने गरीब पुरुष के वेष मे जो नाना प्रकार की क्रियायें की है-वह उनमे थोडासा भी अहंकार-ममकार नहीं करता,वह सोलहवे स्वर्गकी देवागना आदि विभूति और देव स्वरूप मे ही अहकार-ममकार करता है। उस देवकी तरह मै सिद्ध समान आत्मा द्रव्य, मै पर्याय मे नाना प्रकार की चेष्टा करता हुआ भी अपनी मोक्ष-लक्ष्मीको नही भूलता है तव मै लोकमे किसका भय करू?"
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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