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________________ ( १३५ ) छल-कपटादि मायाचार का व्यवहार करके दूसरो को ठगने का कार्य किया करता है | प्र० २४- कोधादि कषाय इच्छा प्रबल होने पर भोग इच्छा और रोगाभाव इच्छा का क्या होता है ? उत्तर- इत्यादि प्रकार से क्रोध - मान-लोभ कषाय की प्रबलता होने पर भोग इच्छा गौण हो जाती है तथा रोगाभाव इच्छा मन्द हो जाती है । प्र० २५ - जब भोग इच्छा प्रबल हो तब मोह इच्छा का क्या होता है ? उत्तर - जव भोग इच्छा प्रबल हो जाती है तब अपने पिता आदि को अच्छा नही खिलाता, सुन्दर वस्त्रादि नही पहिनाता इत्यादि । स्वय ही अच्छी-अच्छी मिठाइया आदि खाने की इच्छा करता है, खाता है, सुन्दर पतले बहुमूल्य वस्त्रादि पहिनता है और घर के कुटुम्बी आदि भूखे मरते रहते है, इस प्रकार भोग इच्छा प्रबल होने पर मोहइच्छा गौण हो जाती है। प्र० २६- जब भोगइच्छा प्रबल हो तब कषाय इच्छा का क्या होता है ? उत्तर - अच्छा खाने - पहिनने, सू घने, देखने, सुनने की इच्छा करता है, वहा कोई बुरा कहे तो भी क्रोध नही करता, अपना मानादि न करे तो भी नहीं गिनता, अनेक प्रकार की मायाचारी करके भी दुखो को भोगकर कार्य सिद्ध करना चाहता है तथा भोग इच्छा की प्राप्ति के लिये धनादि भी खर्च करता है । इस प्रकार भोग इच्छा प्रबल होने पर कषाय इच्छा गौण हो जाती है । प्र० २७- जब भोग इच्छा प्रबल हो तब रोगाभाव इच्छा का क्या होता है ? उत्तर - अच्छा खाना, पहिनना, सू घना, देखना, सुनना आदि कार्य होने पर भी रोगादि का होना तथा भूख-प्यासादि कार्य प्रत्यक्ष
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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