SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२५ ) यादि मे उपयोग लगाये तो उसका उपयोग वहाँ लगे और तब उसका भला हो। (२) यदि इस अवसर मे भी तत्त्व निर्णय करने का पुरुषार्थ न करे, प्रमाद से काल गवाये, या तो मन्द रागादि सहित विषय कषायो के कार्यो मे ही प्रवर्ते या व्यवहार धर्म कार्यो मे प्रवर्ते, तब अवसर तो चला जावेगा और ससार मे ही भ्रमण होगा। (३) इसलिये अवसर चूकना योग्य नहीं है । अब सर्व प्रकार से अवसर आया है, ऐसा अवसर प्राप्त करना कठिन है। इसलिये श्री गुरु दयालु होकर मोक्ष मार्ग का उपदेश दे, उसमे भव्य जीवो को प्रवृत्ति करना। चौथी, पांचवी, छठी ढाल के सारांश पर २० प्रश्नोत्तर प्र० १-सम्यग्दर्शन के अभाव मे जो ज्ञान होता है उसे क्या कहाँ जाता है (२) और सम्यग्दर्शन होने के पश्चात जो ज्ञान होता है उसे क्या कहा जाता है ? उत्तर-(१) सम्यग्दर्शन के अभाव मे जो ज्ञान होता है उसे मिथ्या ज्ञान कहा जाता है (२) और सम्यग्दशन होने के पश्चात जो ज्ञान होता है उसे सम्यग्ज्ञान कहा जाता है। प्र० २-सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान एक साथ प्रकट होते है फिर उनमे अन्तर किस-किस कारण से है ? उत्तर-(१) सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान दोनो भिन्न-भिन्न गुणो की पर्याये है । सम्यग्दर्शन श्रद्धागुण की शुद्ध पर्याय है और सम्यग्ज्ञान ज्ञान गुण की शुद्ध पर्याय है। (२) दोनो के लक्षण मे अन्तर है-सम्यग्दर्शन का लक्षण विपरीत अभिप्राय रहित तत्वार्थ श्रद्धा है और सम्यग्ज्ञान का लक्षण सशय आदि दोष रहित स्व-पर का यथार्थतया निर्णय है। (३) दोनो मे कारण-कार्य भाव से भी अन्तर है। सम्यग्दर्शन निमित्त कारण है और सम्यग्ज्ञात नैमित्तिक कार्य है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy