SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२१ ) (७)साधर्मी बन्धुओ को देखकर उनके प्रति गौ-वत्स समान प्रीति करते है। (८) ऐसे सभी धर्म कार्यो को करते है कि जिससे धर्म की अतिशय महिमा प्रसिद्ध हो-इत्यादि प्रमाण सम्यक्त्व होने पर नि शकितादि आठ गुण तत्काल प्रगट हो जाते है। [आ] इन आठ गुणो से विपरीत (१) शका, (२) काक्षा, (३) विचिकित्सा, (४) मूढ दृष्टि, (५) अपगूहन, (६) अस्थितिकरण (७) अवात्सल्य और (८) अप्रभावना रुप आठ दोष उत्पन्न ही नहीं होते है। प्र० ९४-सम्यग्दष्टि जीव को कौन-कौन से आठ मद नहीं होते है और क्यो नही होते है ? और होते है तो क्या होता है? उत्तर-पिता भूप वा मातुल नृप जो, होय न तो मद ठाने । मद न रुप को मद न ज्ञान को, धन बल को मद भानै ।१३ . तप कौ मद न मद जु प्रभुता को, करै न सौ निज जाने । मद धारे तो यही दोष वसु समकित कौ मल ठाने । भावार्थ-अ सम्यग्दृष्टि जीव का (१) पिता राजा होवे तो उसका भी कुलमद नही होता है। (२) मामा राजा होवे तो उसका भी जातिमद नही होता है। (३) वैभव धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होने का भी मद नहीं होता है। (४) सुन्दर रुप का भी मद नही होता है। • (५) ज्ञान का भी मद नही होता है। (६) शरीर मे विशेष बल हो तो उसका भी मद नहीं होता है। (७) लोक मे कोई मुखिया-प्रधान पद आदि अधिकार का भी मद नही होता है। (८) धन-सम्पत्ति कोष का भी मद नही होता है। [आ] जिसने रागादि विभाव भावो को छोडकर उनसे भिन्न आत्मा का ज्ञान प्रगट किया है उसको जाति आदि आठ प्रकार के अस्थिर नाशवान वस्तुओ का मद कैसे हो सकता है ? कभी भी नही हो सकता है । इस प्रकार सम्यग्दृष्टि जीव को आठ प्रकार के मदो का अभाव वर्तता है। [इ] यदि उनका गर्व करता है तो यह मद सम्यग्दर्शन के आठ दोप बनकर उसे दूषित करते है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy