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________________ ये कमों ने रोका है और राजदर र मार किया है। (8) नवन हित हेलविना मानक निनप सम्पर दर्गन-जान चरित्र ही जीव को हितकारी है। स्वल में स्थिरता तारा राग का जितना जमाव वह वैगग्य है और पर ही सुख का कारः है। यह संदर तत्व का ज्यो का त्योभलान है। प्र०६८-जिन-जिनवर और जिनदर पनों ने 'संदरतत्व का ज्यों का त्यों श्रद्धान' फिले बताया है ? उत्तर-खोपयोग में निश्चय सम्यग्दर्शन के काल में मारिनगुप मे दो धारा शुरु हो जाती है। जिते मिश्रभाव रहते है। मिश्रभाव मे जो वीतगगता है वह नवर है और राग है वह बन्ध है। अतः जितनी वीतगगता है वह ही संवर है । वीतरागता को ही संकर मानना-पह 'सवरतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्वान' है। प्र. ६९- जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'संवरतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान के जानने से क्या लाभ रहा? उत्तर-अनन्त ज्ञानियो का एकमत है-ऐसा पता चल जाता है। प्र० ७०-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभों से कथित संदरतत्त्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' सुनकर ज्ञानी क्या जानते है और क्या करते हैं ? उत्तर-कोवली के समान 'सवरतत्व का ज्यो कालों पहल है और अवन्ध स्वभावी निज भगवान मे विशेष एकाता से परमात्मा बन जाते है। प्र० ७१-जिन-जिनवर और जिनवर वृषभों से कथित. संपर. तत्त्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' सुनकर-सम्यक्त्व के सम्मुख पार मिथ्या दृष्टि जीव क्या जानते है और क्या करते हैं ।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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