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________________ (६०) मनावान। पाना मी मांग पता नगवान ।। अदा ल तमा निमंत भव्य । mms - Tantries निनदयाल का जानना -मिव मुगमय । परमा भगवान मान गुग मानगयी। नि- निरनि निज जनायो । निजानन्द गजाम द्रा पा पांगमय नन्दन गुनिमय ! भन गा गटाने में सगतानमय परमoll र , नामबार नमन कि. चिदानन शुसान्म दर in भाद पूर्ण अक्षत गुणमर ! भर नमुद्रपान उनाने में लाता मनय परमः॥ 2 मत मापन्न दे. कालन् नि। चिदानन्द शुभाता द्रन्च अंक प्रवन परम निगमय । पर परणति के दूर भगाने मे लगा है कि समय परमo! ___ हो मनमा पनि सम्पन्न शुभ मा.मदेगय पुपम् नि० चिदानन्द शुद्धात्म द्रव्य का पूर्ण तप्त नैवेद्य बजय ! चिर अतृप्ति का रोग मिटाने में लगता है एक ममय ।।परम! ___ *ह्री अनन्त प्ररित गम्पन्न शुद्र वान्मदेवाय नवेदन नि० चिदानन्द शुद्धात्म द्रव्य का ज्ञान प्रकाश पूर्ण निजमय । पर परणति के दूर भागने में लगता है एक समय ।। ही अनन्त सक्ति सम्पन्न शुद्ध नात्मदेवाय दीपम् नि०
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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