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________________ (८४ ) भोग विलासो की वातो मे सारा समय व्यतीता है, ट ट नार बजे निकाला चपरासी ने रीता है | हाय हाय क्या हुआ यहाँ से भी मैं खाली जाता हूँ, फूटि गई तकदीर कही से भी कुछ नहि ले पाता हूँ। रोता धुनता है शीस दौडि करि पास नृपति के आया है। अपनी मूरखता का राजा को सव हाल सुनाया है ॥१०॥ फिर तीजा कोठा भूपति ने चांदी का खुलवाया है, तीन बजे तक ढो ले जाओ चाहे जितनी माया है। हर्पित होकर चाँदी के कोठे मे भीतर जाता है, वहाँ सामने एक भपूरव गोरख धघा पाता है ।।११।। जरा देखलं ये क्या जिसमे उलझी सुलझी कड़ियाँ हैं। हाथ लगाते गोरख घवे की खिसकी सब लडियाँ हैं । बोला चपरासी जैसा था वैसा इसे करा लूंगा, तब चाँदी लेने को कोठे के भीतर जाने दूंगा ॥१२॥ ज्यो ज्यो करता ठीक इसे त्यो त्यो ही और उलझता है, हुये तीन घण्टे पर गोरख धन्धा नही सुलझता है। ट ट तीन बजे चपरासी कहाँ मानने वाला है, कान पकडि रीते हाथो कोठे से तुरन्त निकाला है ॥१३॥ गिड गिडाय करि बोला चपरासी कुछ तो ले लेने दो, राजी खुशी चला जा नातर जड़ कमरि में लाते दो। करता पश्चाताप पास राजा के जाकर रोया है, मुझ शठ ने ये अवसर भी गोरख धधे मे खोया है ।।१४॥ बोला नृप हसि करि तू मूरख कुछ नहिं लेने पायेगा, अब ताँबा पीतल वाला चौथा कोठा खुलि जायेगा। ये आखीर समय तांबे पीतल का भी मत खो देना, जितना ढोया जाय तीन घटे मे उतना ढो लेना ॥१५॥
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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