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________________ (५१) सुख मानना, मोक्ष मे शरीर, इन्द्रिय, खाना-पीना, मित्रादि कुछ भी । नही होते हैं इसलिए मोक्ष मे अतीन्द्रिय स्वाधीन सुख न मानना यह । मोक्षतत्व सम्बन्धी जीवतत्व का उल्टा श्रद्धान है। प्रश्न ३५-जिनमत मे जो मोक्ष का उपाय कहा है इससे मोक्ष होता ही है ऐसा किस प्रकार है ? __ उत्तर-मोक्ष के उपाय मे पांच कारण एक ही साथ होते हैं जब पात्रजीव (१) अपने ज्ञायक स्वभाव के सन्मुख होकर (२) पुरुषार्थ करता है, (३) काललब्धि, (४) भवितव्य और (५) कर्म के उपशमादि धर्म करने वाले को एक ही साथ होते है। इसलिए जो पात्र जीव पुरुषार्थ से जिनेश्वरदेव के उपदेशानुसार मोक्ष का उपाय करता है, उसको सर्व कारण मिलते है और उसे नियम से मोक्ष की प्राप्ति होती ही है। प्रश्न ३६-निमित्त और उपादान दोनो इकट्ठे होकर कार्य करते हैं ऐसा मानने वाले के ज्ञान में क्या-क्या दोष आते हैं ? उत्तर-(१) कार्य का सच्चा कारण उपादान कारण है उसे नही पहिचाना अन्यथा कारण मानने से कारण-विपरीतता हुई। (२) जब उपादान अपना कार्य करता है तब उचित निमित्त स्वयमेव होता ही है। निमित्त को उपचार मात्र कारण कहने मे आता है। ऐसा वस्तुस्वरूप ना जानने से स्वरूप-विपरीतता हुई। (३) प्रत्येक द्रव्य सदैव अपना ही कार्य करता है पर का कुछ भी नही कर सकता है ऐसी भिन्नता ना जानने से भेदाभेद-विपरीतता हुई। प्रश्न ३७-जिनके जानने से मोक्षमार्ग मे प्रवृत्ति हो वह क्या क्या है ? उत्तर-हेय-उमादेय तत्वो की परीक्षा करना, जीवादि छह द्रव्यो को,सात तत्वो को,छह सामान्य गुणो को चार अभावो को, छह कारको को देव-गुरु-धर्म को पहिचानना, त्यागने योग्य मिथ्यादर्शनादिक का और ग्रहण करने योग्य सम्यग्दर्शनादिक का स्वरूप: पहिचानना, निमित्त-नैमित्तिक, निश्चय-व्यवहार, उपादान-उपार
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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