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________________ । ४० ) चौबीस श्री जिनराज पूजूं बीस क्षेत्र विदेह के, नामावली इक सहस वसु जय होय पति शिव गेह के । जल गवाक्षत पुष्प चरू, दीप धूप फल लाय । सर्व पूज्य पद पूजहू बहु विधि भक्ति बढाय ।। ॐ ह्रीं श्री अर्हन्त-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-सर्व साधु, देव-शास्त्र-गुरु, उत्तम क्षमादि दशधम , दर्शनविशुद्धि आदि पोडश भावना, वलोक्य सबधि कृत्रिम अकृत्रिम समस्त चैत्य-चैत्यालय, पचमेरु अवधि चैत्यचन्यालय, नदीवर मवधि जिन-जिनालय, निर्वाण क्षेत्र श्री कैलाशसम्मेदगिरि-गिरनारगिरि-चपापुरी-पावापुरी आदि तीर्थक्षेत्र , श्रीऋषभादिनविशति जिनेन्द्रदेव, श्रीमीमधरादि विशति जिनेन्द्रदेव , आदि समस्तपूज्यपदेभ्यो अनर्थ पद प्राप्तये महाध निर्वपामीति स्वाहा । (१४) शान्ति पाठ शास्त्रोक्त विधि पूजा महोत्सव सुरपति चक्री करे, हम सारीखे लघु पुरुप कैसे यथाविधि पूजा करै । धन क्रिया ज्ञान रहित न जाने रीत पूजन नाथ जी, हम भक्ति वश तुम चरण आगे जोड लीने हाथ जी। दुख हरन मगल करण आशा भरण जिन पूजा सही, यो चित्त मे श्रद्धान मेरे शक्ति है स्वयमेव ही। तुम सारीखे दातार पाए काज लघु जाचूं कहा, मुझ आप सम कर लेऊ स्वामी यही इक बाँछा महा । ससार भीषण विपिन मे वसुकर्म मिल आतापिओ, तिस दाहते आकूलित चिरतै शान्तिथल कह ना लियो । तुम मिले शान्तिस्वरूप शान्तिकरन समरथ जगपति, वसुम मेरे शान्ति करदो शान्तिमय पचम गति । जबलों नही शिवलहू तबलो देह ये धन पावना, सत्सग शुद्धाचरण श्रुत अभ्यास आतम भावना ।।
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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