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________________ ( २३ ) नित्य पूजा संग्रह ॐ जय जय जय, नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु । णमो अरिहन्ताण, णमो सिद्धाण, णमो आइरियाण, णमो उवज्झायण, णमो लोए सन्न-साहूण । ॐ ह्री अनादि मूल महेभ्यो नम (पुष्पांजलि)। चत्तारि मगल, अरिहता मगल, सिद्धा मगल, साहू मगल, केवलि पण्णत्तो, धम्मो मगल । चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारि सरण पव्वज्जामि, अरिहते सरण पवज्जामि, सिद्ध सरण पव्वज्जामि, साहू सरण पव्वज्जामि,केवलि पण्णत्त धम्म सरण पव्वज्जामि । ॐ ह्री नमो अर्हते स्वाहा । (पुष्पाजलि)। अपवित्र हो या पवित्र, जो णमोकार को ध्याता है। चाहे सुस्थित हो या दुस्थित, पाप मुक्त हो जाता है ।।१।। हो पवित्र अपवित्र दगा, कैसी भी क्यो नहिं हो जनकी। परमातम का ध्यान किये, हो अन्तर वाहर शुचि उनकी ॥२॥ है अजेय विघ्नो का हर्ता, णमोकार यह मत्र महा। सव मगल मे प्रथम सुमगल, श्री जिनवर ने एम कहा ॥३॥ सब पापो का है क्षय कारक, मगल मे सबसे पहला। नमस्कार या णमोकार यह, मत्र जिनागम मे पहला ॥४॥ अर्ह ऐसे परम ब्रह्म-वाचक, अक्षर का ध्यान धरूँ। सिद्ध चक्र का सद्बीजाक्षर, मन वचकाय प्रणाम करूं ||५|| अष्ट कर्म से रहित मुक्ति-लक्ष्मी, के घर श्री सिद्ध नौ । सम्यक्त्वादि गुणो से सयुत, तिन्हे ध्यान घर कर्म वमं ॥६॥ जिनवर की भक्ति से होते, विघ्न समूह अन्त जानो। भूत गाकिनी सर्प शान्त हो, विप निविष होता मानो ॥७॥
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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