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________________ ( १३६ ) आपको बैठा जरा लोभ मे, पर मे दृष्टि लगाना गजब हो गया । राज वैभव मिला इन्द्री सुख भी मिला भूल तुझको तत्व समझना गजब हो गया ॥ १ ॥ दुर्लभ मानुष जन्म पाके हे आत्मन, तुझको ज्ञानी कहाना गजब हो गया । आत्म शक्ति बराबर है हर जीव में, सच्चे ज्ञान का होना गजब हो गया || २ || मिथ्याभाव को लेकर स्वर्ग गया, वहाँ माला मुरझाना गजब हो गया । चारो गति मे गया सुख कही न मिला, सम्यग्दर्शन का पाना गजब हो गया ॥ ३॥ अपने मंडल मे भक्ति का भाव जगा, सच्चे देव गुरु का समागम मिला । मेरे आतम मे आनन्द की लहरें उठी, सच्चे दर्शन का पाना सुगम हो गया ॥४॥ ४६. (तर्ज तुम्हीं मेरे मन्दिर) न समझो अभी मित्र कितना अधेरा, जभी जाग जाओ तभी है सवेरा ॥ टेक ॥ गई सो गई मत गई को बुलाओ, नया दिन हुआ है नया डग बढाओ । न सोचो न लाओ बदन पर मलिनता, तुम्हारे करो मे है कल की सफलता ॥ जली ज्योति बन कर ढकेला अधेरा, जभी जाग जाओ तभी है सवेरा ॥१॥ पियो मित्र शोले समझ करके पानी, दुखो ने लिखी है सुखो की कहानी । नही पढ सका कोई किस्मत का कासा, नही जानत कब पलट जाये पासा ॥ चल जो मिला मजिलो का बसेरा, जभी जाग जाओ तभी है सवेरा ॥२॥ J
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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