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________________ ( ११५ ) डाके जनी चोरियां बेईमानी से धन ठगता था, इसीलिये ये सारे घर वालो को प्यारा लगता था ॥ १ ॥ जेबें कतरि सैकडो रुपये लाकर घर मे धरता था, मात पिता भाई भावज सारा घर आदर करता था । पुण्योदय से लडके के इक शब्द कान मे आता है, श्रवण सुखद उपदेश भरा सुनने को बाहर जाता है ॥२॥ गली गली गाता फिरता था साधू एक महा गुनिया, झूठी है दुनिया रे बाबा झूठी है सारी दुनिया | झूठे मात पिता सुत भाई झूठी है नातेदारी, झूठा है सब कुटम कबीला झूठी है प्यारी नारी ॥३॥ हो प्रसन्न लडके ने पूछा बाबा जी क्या गाते हो, झूठी है दुनिया झूठी ये क्या उपदेश सुनाते हो । मेरे सुख मे सुखी सभी जन दुख मे दुखिया मेरे हँसने पर सब हँसते रोने पर रो मुझे खिलाकर खाते है सब मुझे सुलाकर सोते हैं, मै स्नान करू ँ तो भाई पांव आनकर घोते है भावी भोजन लाती है तो नारी नीर पिलाती है,, देते पिता अगीस मात करि करि के हवा सुलाती है ॥५॥ तुम कहते हो दुनिया झूठी मैं कैसे ये मानूंगा, झूठी मुझे दिखादो तो मैं तुमको सच्चा जानूँगा । होते हैं, देते हैं ॥४॥ बोले साधू रे बच्चे तू जाकर के घर सो जाना, खाना पीना छोड़ खाट पर पड मुर्दा सा हो जाना ॥ ६ ॥ आँख मोचकर बोल बन्द कर सॉम घोटकर पड जाना' कोई कितना उलटे पलटे पर तू खूब अकड जाना । ' भरना तू ये साग रात भर प्रात होत में आऊँगा, तब तुझको दुनिया है झूठी ये करके दिखलाऊँगा ॥७॥ T · "
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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