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________________ ( १०६ ) अर्हन्त सव ही कर्म के कर नाश इस हो रीति सो, उपदेश भी उसका ही दे, सिद्धि गये नमू उनको ॥२॥ श्रमणो जिनो तीर्थंकरो सब सेय एक ही मार्ग को, सिद्धि गये, नमू उनको, निर्वाण के उस मार्ग को ॥१६६।। (प्रवचनसार) भगवान महावीर ने जब मोक्षगमन किया उस वक्त अमावस्या की अन्धेरी रात होने पर भी सर्वत्र एक चमत्कारिक दिव्य प्रकाश फैल गया था और तीनो लोक के जीवो को भगवान के मोक्ष का आनन्दकारी समाचार पहुच गया था। देवेन्द्रो व नरेन्द्रो ने भगवान की मुक्ति का बड़ा भारी उत्सव किया,अमावस की अन्धकारमय रात्रि करोडो दोपको से जगमगा उठी। करोडो दीपो की आवली से मनाया गया वह निर्वाणमहोत्सव दीपावलो पर्व के रूप मे भारत भर मे प्रसिद्ध हुआ। ईस्वी सन् से भी पूर्व ५२७ वर्ष पहले बना हुआ यह प्रसग आज भी हम सब आनन्द के साथ दीपावली पर्व के रूप मे आनन्द से मानते हैं । दीपावली यह भारतवर्ष का सर्व मान्य आनन्दकारी धार्मिक पर्व है। ऐसे इस दीपावली पर्व के मगल प्रसग पर वीर प्रभु की आत्म साधना को याद करके हम भी उस वीरपथ पर चले एव आत्मा मे रत्नत्रय दोप जगाकर अपूर्व दीपावली पर्व मनावे यही भावना है। जय महावीर-जय महावीर -o(३३) आत्मस्वरूप को यथार्थ समझ सुलभ है अपना आत्मस्वरूप समझना सुगम है, किन्तु अनादि से स्वरूप के अनाभ्यास के कारण कठिन मालम होता है। यदि कोई यथार्थ रूचिपूर्वक समझना चाहे तो वह सरल है।
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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