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________________ (२) जिनवरवृपभो के कथन को सुनकर दीर्घ मसारी मिथ्यादृष्टि क्या जानते है और क्या करते है ? प्रश्न २-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो ने पदार्थ का स्वरूप फंसा और क्या बताया है ? जितके श्रद्धान से सर्व दुःख दूर हो जाता है? उत्तर-"अनादिनिधन वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी-अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती है, कोई किसी के आधीन नही है, कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होती।" जिन-जिनवर और जिनवरवृपभो ने बताया है कि पदार्थों का ऐसा श्रद्धान करने से सर्वदु.ख दूर हो जाता है। प्रश्न ३-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के ऐसे कथन को सुमकर ज्ञानी क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? । उत्तर-केवली के समान समस्त पदार्थो के स्वरूप का ज्ञान हो गया है, मात्र प्रत्यक्ष और परोक्ष का अन्तर रहता है। ज्ञानी अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव मे विशेप स्थिरता करके श्रेणी मांडकर सिद्धदशा की प्राप्ति कर लेते है। प्रश्न ४-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर सम्यक्त्व के सन्मुख मिथ्यादृष्टि पात्र भव्य जीव क्या जानते हैं और 'क्या करते हैं ? उत्तर-अहो-अहो । जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो का कथन महान उपकारी है तथा प्रत्येक पदार्थ की स्वतन्त्रता ध्यान मे आ जाती है। अपने त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव का आश्रय लेकर ज्ञानी बनकर ज्ञानी की तरह निज-स्वभाव मे विशेप एकाग्रता करके श्रेणी माडकर सिद्धदशा की प्राप्ति कर लेते है । प्रश्न ५-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन को सुनकर दीर्ध ससारी सिध्यादृष्टि क्या जानते हैं और क्या करते हैं ? उत्तर-जिन-जिनवर और जिनवरवृषभो के कथन का विरोध
SR No.010120
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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