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________________ ( ८७) प्रश्न ८४-दुःख का अभाव और सुख की प्राप्ति के लिये निमित्त कारण किसको माने तो कल्याण का अवकाश है ? उत्तर-(१) देव-गुरु-धर्म, आप्त, आगम और नौ पदार्थ का आज्ञानुसार प्रवर्तन करे, तो कल्याण का अवकाश है। प्रश्न ८५-देव किसे कहते हैं ? उत्तर-(१) निज स्वभाव के साधन द्वारा अनन्तचतुष्टय प्राप्त किया है और १८ दोष जिसमे नही हैं और जिनके वचन से धर्म तीर्थ की प्रवृत्ति होती है, जिससे अनेक पात्र जीवो का कल्याण होता है। जिनको अपने हित के अर्थी श्री गणधर इन्द्रादिक उत्तम जोव उनका सेवन करते हैं। इस प्रकार अरहत और सिद्धदेव है। इसलिए ऐसे देव की आज्ञानुसार प्रवर्तन करने से धर्म की प्राप्ति, वृद्धि और पूर्णता होती है, अत इन्ही देव को मानना चाहिए। आयुध अम्बरादि वा अग विकरादि जो काम-क्रोधादि निद्य भावो के चिन्ह है ऐसे कुदेवो को नही मानना चाहिए। प्रश्न ८६---गुरु किसे कहते हैं ? उत्तर-जो विरागी होकर समस्त परिग्रह को छोड़कर शुद्वोपयोग रूप परिणमित हुए हैं, ऐसे आचार्य-उपाध्याय और मर्व साधु-गुरु है बाकी सब गुरु नहीं हैं। इसलिए ऐसे गुरु को ही मानना चाहिए, औरो को नही। प्रश्न ८७-धर्म किसे कहते हैं ? उत्तर-(१) निश्यधर्म तो वस्तुस्वभाव है। (२) राग-द्वेप रहित अपने ज्ञाता-दृष्टा स्वभाव में स्थिर होना वह निश्चय धर्म है अर्थात् चारो गतियो के अभाव रूप अविनाशी मोक्ष सुख को प्राप्त करावे वह धर्म है । (३) पूर्ण धर्म ना होने पर मोक्षमार्ग अर्थात् सवर-निर्जरा रूप धर्म होता है। उसमे निश्चय-व्यवहार का जैसा स्वरूप है वैसा समझना चाहिए। इससे विरुद्ध जो परसे, विकार से धर्म बताये उससे बचना चाहिए।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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