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________________ ( ७६ ) प्रश्न ६१ -विकार पूर्ण किसे होता है ? उत्तर-किसी को भी नही, क्योकि यदि विकार पूर्ण हो जावे तो. जीव के नाश का प्रसग उपस्थित हो जावेगा सो ऐसा होता ही नहीं। प्रश्न ६२-भावात्रव अमर्यादित हो तो क्या हो ? उत्तर-जीव के अभाव का प्रसग उपस्थित होवेगा। प्रश्न ६३-भावात्रव मर्यादित है यह क्या सूचित करता है ? उत्तर-जो मर्यादित हो उसका अभाव हो सकता है ऐसा जानकर पात्र जीव निज स्वभाव का आश्रय लेकर भावास्रव का अभाव करके धर्म की शुरुआत करके क्रम से परम दशा को प्राप्त हो जाता है। प्रश्न ६४-द्रव्यानव मर्यादित है या अमर्यादित है ? उत्तर-मर्यादित है, क्योकि यदि अमर्यादित हो तो सम्पूर्ण कार्माणवर्गणा को द्रव्यकर्मरूप परिणमित होने का प्रसग उपस्थित होवेगा, सो ऐसा होता नहीं। प्रश्न ६५-पचाध्यायीकार ने आरव को क्या कहा है ? उत्तर-"आगन्तुकभाव" कहा है। प्रश्न ६६-संसार का बीज क्या है ? उत्तर-पर वस्तुओ मे और शुभाशुभ भावो मे एकत्व वृद्धि ही समार का बीज है । [पुरुपार्थसिद्धयुपाय गा० १४] प्रश्न ६७--पचाध्यायी मे ससार का बीज अर्थात् मिथ्यात्व किसे फिसे बताया है ? उत्तर-(१) जो आत्मा कर्मचेतना (राग-द्वप, मोहरूप) और कर्मफल चेतना (सुख-दुखरूप) वस मेरा आत्मा इतना ही है ऐसा अनुभव करना वह मिथ्यादर्शन है। [गा० ९७२ से १७४] (२) आत्मा को नो तत्वन (पर्याय के भेदरूप) अनुभव करना और सामान्यरूप (अन्त तत्वरूप) अनुभव नहीं करना यह मिथ्यादर्शन है [गा० ६८३ से ६६६] उत्तर-तता (सुख-दुखरूप है। गा० ६७२) अनुभव करना
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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