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________________ (७०) है। आचव और वन्ध जीव-अजीव की सयोगी पर्याय हैं। तथा सवर, निर्जरा और मोक्ष ये जीव-अजीव की वियोगी पर्याये हैं। प्रश्न २१-भाव सवर और भाव निर्जरा मे कितने समय का अन्तर है? उत्तर-दोनो का समय एक ही है, परन्तु शुद्धि प्रगटी इस अपेक्षा भाव सबर है और शुद्धि की वृद्धि हुई इस अपेक्षा भाव निर्जरा है । प्रश्न २२-भावसंवर और भाव निर्जरा होने पर भावमोक्ष होने में कितना समय लगेगा? उत्तर-असख्यात समय ही लगेंगे, सख्यात् या अनन्तसमय नहीं लगेंगे। प्रश्न २३--जिस समय सवर-निर्जरा प्रगटे उसी समय मोक्ष प्रगट हो तो हम संवर-निर्जरा होना माने कोई ऐसा कहे, तो क्या नुकसान है? उत्तर-[१] चौथा गुणस्थान और मिदशा हो रहेगी। और पाँचवे से चौदहवे गुणस्थान तक के अभाव का प्रसग उपस्थित होवेगा। [२] श्रावक, मुनि, श्रेणी, अरहतपने का अभाव हो जावेगा। [३] गुणस्थानो मे क्रम के अभाव का प्रसग उपस्थित होवेगा। [४] कोई उपदेशक नहीं रहेगा, क्योकि सम्यग्दर्शन मे सम्यग्ज्ञानी का ही उपदेश निमित्त होता है इस बात का भी अभाव हो जावेगा। प्रश्न २४-संवर पूर्वक निर्जरा किसको होती है और किसको नहीं होती है ? उत्तर--[१] सम्यग्दर्शन होने पर ही सवरपूर्वक निर्जरा ज्ञानियो को ही होती है मिथ्यादृष्टियो को नही । [२] अनिवृत्तिकारण और अपूर्वकरण मे अकेली निर्जरा होती है लवरपूर्वक नहीं। प्रश्न २५-क्या करें तो सवर-निर्जरा की प्राप्ति होकर मोक्ष हो और क्या करें तो निगोद की प्राप्ति हो? उत्तर-अपने सामान्य द्रव्य स्वभाव को देखने से अपने विशेष मे
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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