SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६ ) उत्तरब, निजंग बोर मोक्ष नाग्नि गनत नाम है। प्रश्न ६ - भाव संघर को नास्ति-अस्ति च परिभाषा क्या है? उत्तर नाभाग मानना होना मातिनाव मवर और यदि प्रगट होगा अन्तिम मार गया। प्रदन ७-माय निजंगपोनास्ति-स्ति उचहपरिभापा क्या है? उतर- जगदिश सानिमानिने भारनिजंग और टिकी वृधिलि में भावनिरा। न भाय मोक्ष को नास्ति-मस्ति गुरफ परिभाषा श्या है? हार - सनाणं दिया भाव मान्ति मे भार नोन है और मापूर पालिका प्रगटाना अग्नि मे ना मोश है। प्रश्न रमायसंवर, भावनिरा किसके अभायाप प्रकट होतो उत्तर सापत्र, बध मेो अभावामवर- निरा प्रगट होती है। प्रश्न १० आना फिमे करते हैं ? उत्तर-जी में जो नियालेनभानुम भापत्य अरूपी अवल्या होती है यह भारत है। प्रश्न ११-आरव के पितने भेद है ? उत्तर-दो भेद है द्रव्य मानव और भाव मानव । प्रश्न १२-आरश्य को दूसरी परिभाषा गया है? उत्तर-(१) नया-नया आना (२) मर्यादा पूर्वक जाना। प्रश्न १३-~भाव आलय में यह दोनो मालव की परिभाषा किस प्रकार घटती हैं? उत्तर--(१) शुभाशुभ भाव नये-नये आते हैं इसलिए "नया-नया आना" यह भावआत्रव है। (२) जीव इतना विकार करे जो ज्ञान दर्शन-वीर्य का सर्वथा अभाव हो जावे, ऐसा नहीं हो सकता इसलिए आसवभाव मर्यादा मे ही आता है । अत• "मर्यादा पूर्वका आना" उसे भावभावव कहते है।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy