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________________ ( ४५ ) अभाव मानते हो तो परिणाम के अभाव मे परिणामी (द्रव्य) का अभाव स्वय सिद्ध है। (२) व्यतिरेक के अभाव मे अन्वय (द्रव्य) अपनी रक्षा नही कर सकता ) इस प्रकार "तत्त्व" के अभाव का प्रसग उपस्थित होवेगा। प्रश्न १११-सर्वथा नित्य पक्ष मानने से क्रिया-फल आदि किस प्रकार नहीं बनेंगे ? उत्तर-आप तो वस्तु को सर्वथा कूटस्थ मानते हो। क्रिया-फल कार्य आदि तो सब पर्याय मे होते हैं, पर्याय की आप नास्ति मानते हो। इसलिए सर्वथा नित्य पक्ष मानने से क्रिया-फल आदि नही बनने का प्रसग उपस्थित होवेगा। प्रश्न ११२-सर्वथा नित्य पक्ष मानने से 'तत्त्व और क्रिया' दोनों कैसे नहीं बन सकेंगे? उत्तर-(१) मोक्ष का साधन जो सम्यग्दर्शनादि शुद्धभाव है वह परिणाम है। उन शुद्ध भावो का फल मोक्ष है और मोक्ष भी निराकुलतारूप, सुख रूप परिणाम है। (२) मोक्षमार्ग साधन और मोक्ष साध्यरूप यह दोनो परिणाम हैं और परिणाम आप मानते नही हो। (३) क्रिया के अभाव होने का प्रसग उपस्थित हो गया, क्योकि क्रिया पर्याय मे होती है। (४) मोक्षमार्ग और मोक्षरूप परिणाम का कर्ता साधक आत्म-द्रव्य है वह (आत्मा) विशेष के बिना सामान्य भी नही बनेगा । (५) इस प्रकार तत्त्व का अभाव ठहरता है अर्थात् कर्ता, कर्म, क्रिया कोई भी कारक नही बनता है। प्रश्न ११३-सर्वथा अनित्य पक्ष मानने में क्या नुकसान है ? उत्तर-(१) सत् को सर्वथा अनित्य मानने वालो के महाँ सत् तो पहले ही नाश हो जावेगा फिर प्रमाण और प्रमाण का फल नही बनेगा। (२) जिस समय वे सत् को अनित्य सिद्ध करने के लिए अनुमान प्रयोग मे यह प्रतिज्ञा बोलेगे कि “जो सत है वह अनित्य है" तो यह कहना तो स्वय उनकी पकड़ का कारण हो जावेगा, क्योकि
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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