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________________ उत्तर-५६व प्रश्नोत्तर के अनुसार उत्तर दो। प्रश्न ६१-~-(१) बाई ने रोटी बनाई, (२) मैंने दरी बिछाई। (३) मैंने रुपया कमाया, (४) मैंने किताब उठाई, (५) धर्मद्रव्य है | जीव-युगल को चलाया, (६) अधर्मद्रव्य ने जीव-पुद्गल को ठहराया, (७) मैंने दांत साफ किये, (5) आकाश ने सब द्रव्यों को जगह दो, (1) कालद्रव्य ने सब द्रव्यो को परिणमाया, (१०) मैं रोटी खाता हूं, (११) बढई ने अलमारी बनाई, (१२) मैंने मकान बनाया, (१३) मैंने कपड़े धोये, (१४) इन्द्रभूति को समोशरण के देखते ही सम्यग्दर्शन हुआ आदि वाक्यो मे अनेकान्त को कब समझा और कब नहीं समझा। - उत्तर-(१) रोटी लोई का अभाव करके आटे मे से बनी है और वाई से नही वनी है तो अनेकान्त को ना समझा है। (२) रोटी लोई का अभाव करके आटे मे से बनी है और बाई से भी बनी है तो अनेकान्त को नही समझा है। इसी प्रकार बाकी १४ प्रश्नोत्तरो के 'उत्तर दो। प्रश्न ६२-दर्शनावरणीय कर्म के अभाव से केवलदर्शन की प्राप्ति हुई इस वाक्य मे अनेकान्त को कब समझा और कब नहीं समझा ? उत्तर-केवलदर्शन आत्मा के दर्शन गुण मे से अचक्षुदर्शन का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता से हुआ है और दर्शनावरणीय कर्म के अभाव से तथा आत्मा के दर्शन गुण को छोडकर दूसरे गणो से नही हुआ है तो अनेकान्त को समझा है। (२) केवलदर्शन आत्मा के दर्शन गुण मे से अचक्षुदर्शन का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता से भी हुआ है और दर्शनावरणीय कर्म के अभाव में तथा आत्मा के दर्शन गुण को छोडकर दूसरे गुणो से भी हुआ है तो अनेकान्त को नहीं समझा है। प्रश्न ६३-(१) अनन्तानुबधी क्रोधादि द्रव्यकर्म के अभाव से स्वरूपाचरण चारित्र की प्राप्ति हुई। (२) अन्तराय कर्म के अभाव क्षायिक वीर्य की प्राप्ति हुई। (३) वेदनीय कर्म के अभाव से अन्या- ।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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