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________________ ( ३० ) कथन हो वहाँ " ऐसा नही है निमित्तादि की अपेक्षा उपचार किया है" ऐसा जानने को व्यवहार- उपचार कहा जा सकता है । प्रश्न ४३ - सम्यक अनेकान्तों कौन है ? उत्तर - वस्तु द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा सामान्य है विशेष नही है । तथा वस्तु पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा विशेष है सामान्य नही है, यह दोनो सम्यक् अनेकान्ती हे | } प्रश्न ४४ - मिथ्या अनेकान्ती कौन है ? उत्तर - वस्तु द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा सामान्य भी है और विशेष भी है । तथा पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा वस्तु विशेष भी है और सामान्य 'भी है, यह दोनो मान्यता वाले मिथ्या अनेकान्ती हैं । प्रश्न ४५ - अपनी आत्मा का श्रद्धान- सम्यग्दर्शन है। और देव, गुरु, शास्त्र का श्रद्धान सम्यग्दर्शन है । इसमे सच्चा अनेकान्त और मिथ्या अनेकान्त किस प्रकार है ? उत्तर - अपनी आत्मा का श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है और देव, गुरु, शास्त्र का श्रद्धान सम्यग्दर्शन नही है यह सच्चा अनेकान्त है । और अपनी आत्मा का श्रद्धान भी सम्यग्दर्शन है और देव गुरु-शास्त्र का श्रद्धान भी सम्यग्दर्शन है यह मिथ्या अनेकान्त है । प्रश्न ४६ - ( १ ) देशचारित्ररूप शुद्धि भी श्रावकपना है और १२ अणुव्रताविक भी श्रावकपना है । ( २ ) सकलचारित्ररूप शुद्धि भी मुनिपना है और २८ सूलगुण पालन भी मुनिपना है । ( ३ ) सम्यग्दर्शन आत्मा के आश्रय से भी होता है और दर्शनमोहनीय के अभाव से भी होता है। इन तीनो वाक्यों में सच्चा अनेकान्त और मिथ्या अनेकान्त क्या है ? उत्तर - देशचारित्ररूप शुद्धि ही श्रावकपना है और १२ अणुव्रतादिक श्रावकपना नही है, यह सच्चा अनेकान्त है । देशचारित्ररूप शुद्धि भी श्रावकपना है और १२ अणुव्रतादिक भी श्रावकपना है यह मिथ्या
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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