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________________ ( 262 ) पर्याय होती है जिसको मिथ्यादर्शन कहते है और एक स्वभाव पर्याय होती है जिसको सम्यग्दर्शन कहते हैं। यह स्वभावपर्याय चौथे से सिद्ध तक एक प्रकार की ही होती है। सविकल्प निर्विकल्प सम्यग्दर्शन या व्यवहार-निश्चय सम्यग्दर्शन नाम की इसमे कोई पर्याय ही नही होती / अत सम्यग्दर्शन को दो प्रकार का मानना भूल है। प्रश्न २४४-विकल्प शब्द के क्या-क्या अर्थ होते हैं ? उत्तर--(१) विकल्प शब्द का एक अर्थ तो साकार है। यह ज्ञान का लक्षण है। इस अपेक्षा सभी ज्ञान सविकल्पक कहलाते है [और दर्शन निविकल्पक कहलाता है] / (2) विकल्प शब्द का दूसरा अर्थ उपयोग सक्रान्ति है / इस अपेक्षा छद्मस्थ के चारो ज्ञान सविकल्पक हैं। केवलज्ञान निर्विकल्पक है। (3) तीसरे एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ पर उपयोग के परिवर्तन को भी विकल्प कहते हैं। इस अपेक्षा उपयोगात्मक स्वात्मानुभूति के समय तो छद्मस्थ का ज्ञान निविकल्पक है क्योकि उसमे उपयोग एक ही आत्मपदार्थ पर रहता है। पदार्थान्तर पर नहीं जाता / शेप समय मे ज्ञेय परिवर्तन किया करता है इसलिए सविकल्प है। इन तीन अपेक्षाओ से ज्ञान को सविकल्प कहते है। (4) विकल्प का चौथा अर्थ राग है। यह चारित्र गुण का विभाव परिणमन है। चारित्र गुण के राग सहित परिणमन को सविकल्प या सराग चारित्र कहते हैं जो दसवे तक है और चारित्र गुण के विकल्प रहित परिणमन को निर्विकल्प या वीतराग चारित्र कहते हैं जो ग्यारहवे बारहवे मे है। (5) पाँचवा विकल्प शब्द का अर्थ बुद्धिपूर्वक राग है जो पाया तो पहले से छठे तक जाता है पर यहाँ मोक्षमार्ग का प्रकरण होने से चौथे, पाँचवे, छठे गुणस्थान का राग ही ग्रहण किया गया है। इन पाँच अर्थों मे विकल्प शब्द का प्रयोग होता है। सम्यग्दर्शन को विकल्पात्मक कहना भारी भूल है। प्रश्न २४५-~-केवलियों का ज्ञान निर्विकल्पक किस प्रकार है ? उत्तर-छद्मस्थो के चारो ज्ञान सविकल्प अर्थात उपयोगसक्रान्ति
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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