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________________ ( 253 ) उत्तर-सम्यग्दृष्टि का मति श्रुत ज्ञान जिस समय सम्पूर्ण परज्ञेयो से हट कर मात्र आत्मानुभव करने लगता है उसको स्वात्मानुभूति कहते हैं तथा सम्यग्दर्शन की सहचरता के कारण और बुद्धिपूर्वक राग के अभाव के कारण इसी को निश्चयसम्यग्दर्शन भी कहते हैं / प्रश्न २३३-सम्यक्त्व का लक्षण श्रद्धा, रुचि, प्रतीति क्या है ? उत्तर-सम्यग्दृष्टि का मति श्रुत ज्ञान जब विकल्प रूप से नौ तत्त्वो की जानकारी तथा श्रद्धा मे प्रवृत्त होता है उस विकल्प को या विकल्पात्मक ज्ञान को सम्यक्त्व का सहचर होने से व्यवहार सम्यक्त्व कहा जाता है। प्रश्न २३४-सम्यक्त्व का लक्षण चरण, प्रशम, सवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिक्य, भक्ति, वात्सल्यता, निन्दा, गर्दा क्या है ? उत्तर-सम्यग्दृष्टि के सम्यक्त्व से अविनाभावी अनन्तानुबन्धी कषाय का अभाव हो जाता है और उसके अभाव से उसके चारित्र मे शुभ क्रियाओ मे प्रवृत्ति होती है। उस शुभ विकल्प रूप मन की प्रवृत्ति को जो चारित्र गुण की विभाव पर्याय है चरण है आरोप से उसे सम्यक्त्व कह देते हैं। तथा उसी समय कषायो मे मन्दता आ जाती है उसको प्रशम कह देते हैं। पचपरमेष्ठी, धर्मात्माओ, रत्नत्रयरूप धर्म तथा धर्म के अगो मे जो प्रीति हो जाती है उसको सवेग, भक्ति वात्सल्यता कहते हैं तथा भोगो की इच्छा न होने को निर्वेद कहते हैं, स्वपर को दया को अनुकम्पा कहते हैं। नौ पदार्थों मे "है" पने के भाव को आस्तिक्य कहते है / अपने मे राग भाव के रहने तथा उससे होने वाले बन्ध के पश्चाताप को निन्दा कहते हैं तथा उस राग के त्याग के भाव को गहीं कहते हैं। ये सब अनन्तानुवधी कषाय के अभाव होने से चारित्र गुण मे विकल्प प्रगट होते है। उनको आरोप से सम्बक्त्व या व्यवहार सम्यक्त्व भी कह देते है क्योकि सम्यक्त्व की सहचरता है। प्रश्न २३५-निशंकित अंग किसे कहते हैं ? उत्तर-शका नाम सशय तथा भय का है। इस लोक मे धर्म,
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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