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________________ ( 226 ) प्रश्न २०५-बद्ध ज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर-जो ज्ञान मोहकर्म से आच्छादित है, प्रत्यर्थ परिणमन शील है अर्थात इष्ट-अनिष्ट पदार्थो के सयोग मे रागी द्वषी मोही होता है, वह वद्ध ज्ञान है / पहले गुणस्थानवर्ती अज्ञानी के ज्ञान को बद्ध ज्ञान कहते (35) प्रश्न २०६-अबद्ध ज्ञान झिसे कहते हैं ? उत्तर-जो मोहकर्म से रहित है, क्षायिक है, शुद्ध है, लोकालोक का प्रकाशक है / वह अवद्ध ज्ञान है। केवली के ज्ञान को अवद्ध ज्ञान कहते हैं। (836) प्रश्न २०७-विभाव के नामान्तर बताओ? उत्तर-परकृतभाव, परभाव, पराकारभाव, पुद्गलभाव, कर्मजन्यभाव, प्रकृति शीलस्वभाव, परद्रव्य, कर्मकृत, तद्गुणाकारसक्रान्लि, परगुणाकार, कर्मपदस्थितभाव, जीव मे होने वाला अजीवभाव, जीवसवधी अजीव भाव, तद्गुणाकृति, परयोगकृतभाव, निमिसकृत भाव, विभावभाव, राग, उपरक्ति, उपाधि, उपरजक, बधभाव, बद्धभाव, बद्धत्व, उपराग, परगुणाकारक्रिया, आगन्तुक भाव, क्षणिक-भाव, ऊपरतरताभाव, स्वगुणच्युति, स्वस्वरूपच्युति इत्यादि बहुत नाम है। प्रश्न २०८-बद्धत्व किसे कहते हैं ? उत्तर-पदार्थ मे एक वैभाविकी शक्ति है। वह यदि उपयोगी होवे अर्थात् विभावरूप कार्य करती होवे तो उस पदार्थ की अपने गुण के आकार की अर्थात् असली स्वरूप की जो सक्रान्ति-च्युति-विभाव परिणति है वह सक्रान्ति ही अन्य है निमित्त जिसमे ऐसा बन्ध है अर्थात् द्रव्य का बिभाव परिणमन बद्धत्व है जैसे ज्ञान का राग रूप परिणमना बद्धत्व है / पुद्गल का कर्मत्वरूप परिणमना वद्धत्व है अर्थात् परगुणाकार क्रिया बद्धत्व है। (840, 844, 868) प्रश्न २०९-अशुद्धत्व किसे कहते हैं ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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